मैं उन साफ-सुथरी ग़ज़लों का पक्षधर हूँ जिनकी उपयोगिता और उपादेयता शीशमहलों तक सीमित न रहे बल्कि जिन्हें जन-साधारण समझ सकें और आनन्द ले सकें। आज़ाद जी की हर ग़ज़ल मेरी इस कसौटी पर भी खरी उतरी है। उन्होंने अपनी ग़ज़लों में सूक्ष्म से सूक्ष्म सम्बेदनाओं को जिस खूबसूरती और तीखेपन के साथ सार्थक अभिव्यक्ति दी है, वह उनकी अपनी अलग पहचान बनाती है। - कृष्णा नन्द चौबे
मैं उन साफ-सुथरी ग़ज़लों का पक्षधर हूँ जिनकी उपयोगिता और उपादेयता शीशमहलों तक सीमित न रहे बल्कि जिन्हें जन-साधारण समझ सकें और आनन्द ले सकें। आज़ाद जी की हर ग़ज़ल मेरी इस कसौटी पर भी खरी उतरी है। उन्होंने अपनी ग़ज़लों में सूक्ष्म से सूक्ष्म सम्बेदनाओं को जिस खूबसूरती और तीखेपन के साथ सार्थक अभिव्यक्ति दी है, वह उनकी अपनी अलग पहचान बनाती है। - कृष्णा नन्द चौबे