Gauri

गौरी

Nonfiction, Reference & Language, Foreign Languages, Indic & South Asian Languages, Fiction & Literature, Short Stories
Cover of the book Gauri by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान, Bhartiya Sahitya Inc.
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान ISBN: 9781613010044
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: January 12, 2013
Imprint: Language: Hindi
Author: Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
ISBN: 9781613010044
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: January 12, 2013
Imprint:
Language: Hindi
गौरी, अपराधिनी की भाँति, माता-पिता दोनों की दृष्टि से बचती हुई, पिता के लिए चाय तैयार कर रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि पिता की सारी कठिनाइयों की जड़ वही है। न वह होती और न पिता को उसके विवाह की चिन्ता में, इस प्रकार स्थान-स्थान घूमना पड़ता। वह मुँह खोलकर किस प्रकार कह दे कि उसके विवाह के लिए इतनी अधिक परेशानी उठाने की आवश्यकता नहीं। माता-पिता चाहे जिसके साथ उसकी शादी कर दें, वह सुखी रहेगी। न करें तो भी वह सुखी है। जब विवाह के लिए उसे जरा भी चिन्ता नहीं, तब माता-पिता इतने परेशान क्यों रहते हैंगौरी यही न समझ पाती थी। कभी-कभी वह सोचतीक्या मैं माता-पिता को इतनी भारी हो गयी हूँ? रात-दिन सिवा विवाह के उन्हें और कुछ सूझता नहीं। तब आत्मग्लानि और क्षोभ से गौरी का रोम-रोम व्यथित हो उठता। उसे ऐसा लगता कि धरती फटे और वह समा जाय, किन्तु ऐसा कभी न हुआ।
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
गौरी, अपराधिनी की भाँति, माता-पिता दोनों की दृष्टि से बचती हुई, पिता के लिए चाय तैयार कर रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि पिता की सारी कठिनाइयों की जड़ वही है। न वह होती और न पिता को उसके विवाह की चिन्ता में, इस प्रकार स्थान-स्थान घूमना पड़ता। वह मुँह खोलकर किस प्रकार कह दे कि उसके विवाह के लिए इतनी अधिक परेशानी उठाने की आवश्यकता नहीं। माता-पिता चाहे जिसके साथ उसकी शादी कर दें, वह सुखी रहेगी। न करें तो भी वह सुखी है। जब विवाह के लिए उसे जरा भी चिन्ता नहीं, तब माता-पिता इतने परेशान क्यों रहते हैंगौरी यही न समझ पाती थी। कभी-कभी वह सोचतीक्या मैं माता-पिता को इतनी भारी हो गयी हूँ? रात-दिन सिवा विवाह के उन्हें और कुछ सूझता नहीं। तब आत्मग्लानि और क्षोभ से गौरी का रोम-रोम व्यथित हो उठता। उसे ऐसा लगता कि धरती फटे और वह समा जाय, किन्तु ऐसा कभी न हुआ।

More books from Bhartiya Sahitya Inc.

Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-37 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Devdas by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-35 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-23 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-39 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-46 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Meri Kahaniyan-Ravindra Kaliya (Hindi Stories) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-03 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Aatmatatwa (Hindi Self-help) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Sapt Suman (Hindi Stories) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-22 by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Meri Kahaniyan-Bhishm Sahani (Hindi Stories) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Aankh Ki Kirkirie (Hindi Novel) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Vijay, Vivek Aur Vibhuti (Hindi Religious) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
Cover of the book Parampara (hindi Novel) by Subhadra Kumari Chauhan, सुभद्रा कुमारी चौहान
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy