विचार करने पर प्रत्येक बुद्धिमान् पुरुष इस बात को समझ सकता है कि मनुष्य जन्म की प्राप्ति से कोई अत्यन्त ही उत्तम लाभ होना चाहिये। खाना, पीना, सोना, मैथुन करना आदि सांसारिक भोगजनित सुख तो पशु-कीटादि तक नीच योनियों में भी मिल सकते हैं। यदि मनुष्य-जीवन की आयु भी इसी सुख की प्राप्ति में चली गयी तो मनुष्य-जन्म पाकर हमने क्या किया? मनुष्य-जन्म का परम ध्येय तो उस अनुपमेय और सच्चे सुख को प्राप्त करना है, जिसके समान कोई दूसरा सुख है ही नहीं।
विचार करने पर प्रत्येक बुद्धिमान् पुरुष इस बात को समझ सकता है कि मनुष्य जन्म की प्राप्ति से कोई अत्यन्त ही उत्तम लाभ होना चाहिये। खाना, पीना, सोना, मैथुन करना आदि सांसारिक भोगजनित सुख तो पशु-कीटादि तक नीच योनियों में भी मिल सकते हैं। यदि मनुष्य-जीवन की आयु भी इसी सुख की प्राप्ति में चली गयी तो मनुष्य-जन्म पाकर हमने क्या किया? मनुष्य-जन्म का परम ध्येय तो उस अनुपमेय और सच्चे सुख को प्राप्त करना है, जिसके समान कोई दूसरा सुख है ही नहीं।