इन दस कहानियों में मैंने अपनी प्रारंभिक कहानी ‘छुटकारा’ इसलिए दी कि उसमें कच्ची धान की बाली की गंध है। मैंने जब लिखना शुरू किया था, प्रायः उस उम्र में आजकल लेखिकाएँ नहीं लिखतीं। आजकल प्रौढ़ अवस्था में वे लिखना शुरू करती हैं, जब कलम-कलाई में चौकन्नापन आ जाता है। मेरे लिए लेखन साइकिल चलाने जैसा एडवेंचर रहा है, डगमग-डगमग चली और कई बार घुटने, हथेलियाँ छिलाकर सीधा बढ़ना सीखा। समस्त गलतियाँ अपने आप कीं, कोई गॉडफादर नहीं बनाया। बिल्ली की तरह किसी का रास्ता नहीं काटा और किसी को गिराकर अपने को नहीं उठाया। हमारे समय में लिखना, मात्र जीवन में रस का अनुसंधान था; न उसमें प्रपंच था न रणनीति। निज के और समय के सवालों से जूझने की तीव्र उत्कंठा और जीवन के प्रति नित नूतन विस्मय ही मेरी कहानियों का स्रोत रहा है। पाठक सुविख्यात लेखिका ममता कालिया की कहानियों को एक ही पुस्तक में पाकर सुखद अनुभव करेंगे।
इन दस कहानियों में मैंने अपनी प्रारंभिक कहानी ‘छुटकारा’ इसलिए दी कि उसमें कच्ची धान की बाली की गंध है। मैंने जब लिखना शुरू किया था, प्रायः उस उम्र में आजकल लेखिकाएँ नहीं लिखतीं। आजकल प्रौढ़ अवस्था में वे लिखना शुरू करती हैं, जब कलम-कलाई में चौकन्नापन आ जाता है। मेरे लिए लेखन साइकिल चलाने जैसा एडवेंचर रहा है, डगमग-डगमग चली और कई बार घुटने, हथेलियाँ छिलाकर सीधा बढ़ना सीखा। समस्त गलतियाँ अपने आप कीं, कोई गॉडफादर नहीं बनाया। बिल्ली की तरह किसी का रास्ता नहीं काटा और किसी को गिराकर अपने को नहीं उठाया। हमारे समय में लिखना, मात्र जीवन में रस का अनुसंधान था; न उसमें प्रपंच था न रणनीति। निज के और समय के सवालों से जूझने की तीव्र उत्कंठा और जीवन के प्रति नित नूतन विस्मय ही मेरी कहानियों का स्रोत रहा है। पाठक सुविख्यात लेखिका ममता कालिया की कहानियों को एक ही पुस्तक में पाकर सुखद अनुभव करेंगे।