आराधना के गीत निराला-काव्य के तीसरे चरण में रचे गए हैं, उनके इस चरण के धार्मिक काव्य की विशेषता यह है कि वह हमें उद्विग्न करता है, आध्यात्मिक शांति निराला को कभी मिली भी नहीं, क्योंकि इस लोक से उन्होंने कभी मुँह नहीं मोड़ा बल्कि इस लोक को अभाव और पीड़ा से मुक्त करने वे कभी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों की ओर देखते रहे और कभी ईश्वर की ओर। उनकी यह व्यकुलता ही उनके काव्य सबसे बड़ी शक्ति है। दुख हर दे, जल-शीतल सर दे! वरदे! पावन उर को कर दे! शून्य कोष ओसों से भर दे, तरु को रश्मी, पत्र-मर्मर दे, मौन तूलि को मूर्ति मुखर दे, पग-पग को जग के तग तर दे! पारण को गोधूम-चूर्ण, घृत, सुरभि सुचारण को सौरभ-सृत, निर्धारण को नाम अलंकृत, मारण को कलि-कल्मष, वर दे!
आराधना के गीत निराला-काव्य के तीसरे चरण में रचे गए हैं, उनके इस चरण के धार्मिक काव्य की विशेषता यह है कि वह हमें उद्विग्न करता है, आध्यात्मिक शांति निराला को कभी मिली भी नहीं, क्योंकि इस लोक से उन्होंने कभी मुँह नहीं मोड़ा बल्कि इस लोक को अभाव और पीड़ा से मुक्त करने वे कभी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों की ओर देखते रहे और कभी ईश्वर की ओर। उनकी यह व्यकुलता ही उनके काव्य सबसे बड़ी शक्ति है। दुख हर दे, जल-शीतल सर दे! वरदे! पावन उर को कर दे! शून्य कोष ओसों से भर दे, तरु को रश्मी, पत्र-मर्मर दे, मौन तूलि को मूर्ति मुखर दे, पग-पग को जग के तग तर दे! पारण को गोधूम-चूर्ण, घृत, सुरभि सुचारण को सौरभ-सृत, निर्धारण को नाम अलंकृत, मारण को कलि-कल्मष, वर दे!