‘श्रीरामचरितमानस’ विलक्षण एवं महत्त्वपूर्ण सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यही बात ‘श्रीमद्भागवत’ के सन्दर्भ में भी है, ‘श्रीमद्भागवत्’ के वक्ता परमहंस शुकदेव हैं। यहाँ पर दो शब्द जुड़े हुए हैं, एक ओर तो उन्हें शुक के रूप में प्रस्तुत किया गया और शुक एक पक्षी है, पर उसके शुकत्व के साथ-साथ हंस शब्द भी जुड़ा हुआ है तथा उसका तात्पर्य यह है कि ‘श्रीमद्भागवत्’ के जो श्रेष्ठतम वक्ता हैं, चाहे आप उन्हें हंस के रूप में देखें और चाहे शुक के रूप में देखें, वे हमारे वंदनीय हैं। जब आप ‘श्रीमद्भागवत’ के साथ-साथ ‘श्रीरामचरितमानस’ पर ध्यान देंगे तो इसके वक्ता भी एक पक्षी हैं और श्रोता के रूप में भी दूसरे पक्षी का उल्लेख किया गया है। वक्ता श्रीकाकभुशुण्डिजी हैं और श्रोता गरुड़जी हैं और इस तरह से ये दोनों विलक्षण हैं। इनमें जिन पक्षियों के नाम का सांकेतिक उल्लेख किया गया है और जिस रूप में उनकी ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है, बहुधा उनके अंतरंग अर्थ की ओर लोगों की दृष्टि नहीं जाती है, पर ‘श्रीरामचरितमानस’ में उसे और भी स्पष्ट किया गया है।
‘श्रीरामचरितमानस’ विलक्षण एवं महत्त्वपूर्ण सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यही बात ‘श्रीमद्भागवत’ के सन्दर्भ में भी है, ‘श्रीमद्भागवत्’ के वक्ता परमहंस शुकदेव हैं। यहाँ पर दो शब्द जुड़े हुए हैं, एक ओर तो उन्हें शुक के रूप में प्रस्तुत किया गया और शुक एक पक्षी है, पर उसके शुकत्व के साथ-साथ हंस शब्द भी जुड़ा हुआ है तथा उसका तात्पर्य यह है कि ‘श्रीमद्भागवत्’ के जो श्रेष्ठतम वक्ता हैं, चाहे आप उन्हें हंस के रूप में देखें और चाहे शुक के रूप में देखें, वे हमारे वंदनीय हैं। जब आप ‘श्रीमद्भागवत’ के साथ-साथ ‘श्रीरामचरितमानस’ पर ध्यान देंगे तो इसके वक्ता भी एक पक्षी हैं और श्रोता के रूप में भी दूसरे पक्षी का उल्लेख किया गया है। वक्ता श्रीकाकभुशुण्डिजी हैं और श्रोता गरुड़जी हैं और इस तरह से ये दोनों विलक्षण हैं। इनमें जिन पक्षियों के नाम का सांकेतिक उल्लेख किया गया है और जिस रूप में उनकी ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है, बहुधा उनके अंतरंग अर्थ की ओर लोगों की दृष्टि नहीं जाती है, पर ‘श्रीरामचरितमानस’ में उसे और भी स्पष्ट किया गया है।