Kayakalp (Hindi Novel)

कायाकल्प

Fiction & Literature, Psychological
Cover of the book Kayakalp (Hindi Novel) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द, Bhartiya Sahitya Inc.
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Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द ISBN: 9781613010860
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: December 30, 2012
Imprint: Language: Hindi
Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
ISBN: 9781613010860
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: December 30, 2012
Imprint:
Language: Hindi
प्रेमचंद के उपन्यास कायाकल्प में चिन्तनीय पारलौकिक तत्त्व उभरे हैं। उपन्यास में राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प प्रस्तुत किया गया है। राजकुमार पर्वतों में रहते हैं, योगाभ्यास करते हैं और ऐसे वायुयानों का आविष्कार करते हैं, जो इच्छानुसार उड़ते हैं, और भूमि पर उतरते हैं। ऐसे काल्पनिक कथानक को पूर्वजन्म के द्वारा प्रेमचंद ने इस तरह मोड़ा है कि सामाजिक और मानवीय तत्त्वों के गम्भीर अध्येता के लिए यह कृति प्रचुर सामग्री प्रस्तुत करती है। ‘कायाकल्प के काल-चक्र में आगरा में साम्प्रदायिक दंगे प्रारम्भ होते हैं।’ गांधीवादी विचारधारा का प्रयोग करके चक्रधर उपद्रव शान्त करता है। ग्राम जगत में जमींदार के शोषण का प्राधान्य है। जनता इसके विरोध में उठ खड़ी होती है। इन्हीं सूत्रों के साथ मुंशी वज्रधर और उनके परिवार की रोचक कथा भी लिपटी हुई है। पुराने दरबारी वज्रधर का जीवन चाटुकारिता का मूर्तमन्त रूप है। नेता बन जाने पर भी चक्रधर न जाने क्यों वैराग्य ले लेता है। इस उपन्यास की केन्द्रीय समस्या पृथ्वी पर न्याय की खोज है। उपन्यास में यत्र-तत्र ऐसे विचार सहज प्राप्त हैं…ईश्वर ने ऐसी सृष्टि की रचना ही क्यों की, जहां इतना स्वार्थ, द्वेष और अन्याय है? क्या ऐसी पृथ्वी नहीं बन सकती थी जहां सभी मनुष्य, सभी जातियां प्रेम और आनन्द के साथ संसार में रहतीं? वह कौन सा इंसाफ है कि कोई तो दुनिया में मजे उड़ाए, और कोई धक्के खाए?
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प्रेमचंद के उपन्यास कायाकल्प में चिन्तनीय पारलौकिक तत्त्व उभरे हैं। उपन्यास में राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प प्रस्तुत किया गया है। राजकुमार पर्वतों में रहते हैं, योगाभ्यास करते हैं और ऐसे वायुयानों का आविष्कार करते हैं, जो इच्छानुसार उड़ते हैं, और भूमि पर उतरते हैं। ऐसे काल्पनिक कथानक को पूर्वजन्म के द्वारा प्रेमचंद ने इस तरह मोड़ा है कि सामाजिक और मानवीय तत्त्वों के गम्भीर अध्येता के लिए यह कृति प्रचुर सामग्री प्रस्तुत करती है। ‘कायाकल्प के काल-चक्र में आगरा में साम्प्रदायिक दंगे प्रारम्भ होते हैं।’ गांधीवादी विचारधारा का प्रयोग करके चक्रधर उपद्रव शान्त करता है। ग्राम जगत में जमींदार के शोषण का प्राधान्य है। जनता इसके विरोध में उठ खड़ी होती है। इन्हीं सूत्रों के साथ मुंशी वज्रधर और उनके परिवार की रोचक कथा भी लिपटी हुई है। पुराने दरबारी वज्रधर का जीवन चाटुकारिता का मूर्तमन्त रूप है। नेता बन जाने पर भी चक्रधर न जाने क्यों वैराग्य ले लेता है। इस उपन्यास की केन्द्रीय समस्या पृथ्वी पर न्याय की खोज है। उपन्यास में यत्र-तत्र ऐसे विचार सहज प्राप्त हैं…ईश्वर ने ऐसी सृष्टि की रचना ही क्यों की, जहां इतना स्वार्थ, द्वेष और अन्याय है? क्या ऐसी पृथ्वी नहीं बन सकती थी जहां सभी मनुष्य, सभी जातियां प्रेम और आनन्द के साथ संसार में रहतीं? वह कौन सा इंसाफ है कि कोई तो दुनिया में मजे उड़ाए, और कोई धक्के खाए?

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