अभिमानी का सिर नीचा होता है, परन्तु इस संसार में ऐसे लोग भी हैं जो सिर नीचा होने पर भी, उसको नीचा नहीं मानते। ऐसे लोगों के लिए ही कहावत बनी है‘रस्सी जल गई, पर बल नहीं टूटे’। इसका कारण मनुष्य की आद्योपांत विवेक-शून्यता है। विवेक अपने चारों ओर घटने वाली घटनाओं के ठीक मूल्यांकन का नाम है। मन के विकार हैंकाम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार। जब इन विकारों के कारण बुद्धि मलिन हो जाती है तो वह ठीक को गलत और गलत को ठीक समझने लगती है। इसको विवेक-शून्यता कहते हैं। मन के विकारों में अहंकार सबसे अन्तिम और सबसे अधिक बुद्धि भ्रष्ट करने वाला है। अहंकारवश मनुष्य ठोकर खाकर गिर पड़ता है, बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाने से वह नहीं मानता कि वह गिर पड़ा है अथवा उसका अभिमान व्यर्थ था। वह अपनी भूल स्वीकार नहीं करता और अन्त तक कहता रहता हैमैं न मानूँ, मैं न मानूँ
अभिमानी का सिर नीचा होता है, परन्तु इस संसार में ऐसे लोग भी हैं जो सिर नीचा होने पर भी, उसको नीचा नहीं मानते। ऐसे लोगों के लिए ही कहावत बनी है‘रस्सी जल गई, पर बल नहीं टूटे’। इसका कारण मनुष्य की आद्योपांत विवेक-शून्यता है। विवेक अपने चारों ओर घटने वाली घटनाओं के ठीक मूल्यांकन का नाम है। मन के विकार हैंकाम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार। जब इन विकारों के कारण बुद्धि मलिन हो जाती है तो वह ठीक को गलत और गलत को ठीक समझने लगती है। इसको विवेक-शून्यता कहते हैं। मन के विकारों में अहंकार सबसे अन्तिम और सबसे अधिक बुद्धि भ्रष्ट करने वाला है। अहंकारवश मनुष्य ठोकर खाकर गिर पड़ता है, बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाने से वह नहीं मानता कि वह गिर पड़ा है अथवा उसका अभिमान व्यर्थ था। वह अपनी भूल स्वीकार नहीं करता और अन्त तक कहता रहता हैमैं न मानूँ, मैं न मानूँ