Pratigya (Hindi)

Fiction & Literature, Anthologies, Literary Theory & Criticism
Cover of the book Pratigya (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
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Author: Premchand ISBN: 9781310099151
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: June 25, 2014
Imprint: Smashwords Edition Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781310099151
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: June 25, 2014
Imprint: Smashwords Edition
Language: Hindi

देवकी - 'जा कर समझाओ-बुझाओ और क्या करोगे। उनसे कहो, भैया, हमारा डोंगा क्यों मझधार में डुबाए देते हो। तुम घर के लड़के हो। तुमसे हमें ऐसी आशा न थी। देखो कहते क्या हैं।'

देवकी - 'आखिर क्यों? कोई हरज है?'

देवकी ने इस आपत्ति का महत्व नहीं समझा। बोली - 'यह तो कोई बात नहीं आज अगर कमलाप्रसाद मुसलमान हो जाए, तो क्या हम उसके पास आना-जाना छोड़ देंगे? हमसे जहाँ तक हो सकेगा, हम उसे समझाएँगे और उसे सुपथ पर लाने का उपाय करेंगे।'

देवकी - 'नहीं, क्षमा कीजिए। इस जाने से न जाना ही अच्छा। मैं ही कल बुलवा लूँगी।'

देवकी - 'प्रेमा उन लड़कियों में नहीं कि तुम उसका विवाह जिसके साथ चाहो कर दो। जरा जा कर उसकी दशा देखो तो मालूम हो। जब से यह खबर मिली है, ऐसा मालूम होता है कि देह में प्राण ही नहीं। अकेले छत पर पड़ी हुई रो रही है।'

देवकी - 'कौन! मैं कहती हूँ कि वह इसी शोक में रो-रो कर प्राण दे देगी। तुम अभी उसे नहीं जानते।'

बदरीप्रसाद बाहर चले गए। देवकी बड़े असमंजस में पड़ गई। पति के स्वभाव से वह परिचित थी, लेकिन उन्हें इतना विचार-शून्य न समझती थी। उसे आशा थी कि अमृतराय समझाने से मान जाएँगे, लेकिन उनके पास जाए कैसे। पति से रार कैसे मोल ले।

देवकी ने कहा- 'रोओ मत बेटी, मैं कल उन्हें बुलाऊँगी। मेरी बात वह कभी न टालेंगे।'

देवकी ने विस्मय से प्रेमा की ओर देखा, लड़की यह क्या कह रही है, यह उसकी समझ में न आया।

देवकी ने कहा - 'और तेरा क्या हाल होगा, बेटी?'

देवकी ने आँसू भरी आँखों से कहा - 'माँ-बाप किसके सदा बैठे रहते हैं बेटी! अपनी आँखों के सामने जो काम हो जाए, वही अच्छा! लड़की तो उनकी नहीं क्वाँरी रहने पाती, जिनके घर में भोजन का ठिकाना नहीं। भिक्षा माँग कर लोग कन्या का विवाह करते हैं। मोहल्ले में कोई लड़की अनाथ हो जाती है, तो चंदा माँग कर उसका विवाह कर दिया जाता है। मेरे यहाँ किस बात की कमी है। मैं तुम्हारे लिए कोई और वर तलाश करूँगी। यह जाने-सुने आदमी थे, इतना ही था, नहीं तो बिरादरी में एक से एक पड़े हुए हैं। मैं कल ही तुम्हारे बाबूजी को भेजती हूँ।'

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देवकी - 'जा कर समझाओ-बुझाओ और क्या करोगे। उनसे कहो, भैया, हमारा डोंगा क्यों मझधार में डुबाए देते हो। तुम घर के लड़के हो। तुमसे हमें ऐसी आशा न थी। देखो कहते क्या हैं।'

देवकी - 'आखिर क्यों? कोई हरज है?'

देवकी ने इस आपत्ति का महत्व नहीं समझा। बोली - 'यह तो कोई बात नहीं आज अगर कमलाप्रसाद मुसलमान हो जाए, तो क्या हम उसके पास आना-जाना छोड़ देंगे? हमसे जहाँ तक हो सकेगा, हम उसे समझाएँगे और उसे सुपथ पर लाने का उपाय करेंगे।'

देवकी - 'नहीं, क्षमा कीजिए। इस जाने से न जाना ही अच्छा। मैं ही कल बुलवा लूँगी।'

देवकी - 'प्रेमा उन लड़कियों में नहीं कि तुम उसका विवाह जिसके साथ चाहो कर दो। जरा जा कर उसकी दशा देखो तो मालूम हो। जब से यह खबर मिली है, ऐसा मालूम होता है कि देह में प्राण ही नहीं। अकेले छत पर पड़ी हुई रो रही है।'

देवकी - 'कौन! मैं कहती हूँ कि वह इसी शोक में रो-रो कर प्राण दे देगी। तुम अभी उसे नहीं जानते।'

बदरीप्रसाद बाहर चले गए। देवकी बड़े असमंजस में पड़ गई। पति के स्वभाव से वह परिचित थी, लेकिन उन्हें इतना विचार-शून्य न समझती थी। उसे आशा थी कि अमृतराय समझाने से मान जाएँगे, लेकिन उनके पास जाए कैसे। पति से रार कैसे मोल ले।

देवकी ने कहा- 'रोओ मत बेटी, मैं कल उन्हें बुलाऊँगी। मेरी बात वह कभी न टालेंगे।'

देवकी ने विस्मय से प्रेमा की ओर देखा, लड़की यह क्या कह रही है, यह उसकी समझ में न आया।

देवकी ने कहा - 'और तेरा क्या हाल होगा, बेटी?'

देवकी ने आँसू भरी आँखों से कहा - 'माँ-बाप किसके सदा बैठे रहते हैं बेटी! अपनी आँखों के सामने जो काम हो जाए, वही अच्छा! लड़की तो उनकी नहीं क्वाँरी रहने पाती, जिनके घर में भोजन का ठिकाना नहीं। भिक्षा माँग कर लोग कन्या का विवाह करते हैं। मोहल्ले में कोई लड़की अनाथ हो जाती है, तो चंदा माँग कर उसका विवाह कर दिया जाता है। मेरे यहाँ किस बात की कमी है। मैं तुम्हारे लिए कोई और वर तलाश करूँगी। यह जाने-सुने आदमी थे, इतना ही था, नहीं तो बिरादरी में एक से एक पड़े हुए हैं। मैं कल ही तुम्हारे बाबूजी को भेजती हूँ।'

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