जोशी जी ने कहानियों का सृजन करते हुए यह अनुभव किया कि उनमें जीवन के वैविध्य और विस्तार के लिए बहुत कम जगह होती है। यह जगह तो रचना-कर्म में उपन्यास के ही पास होती है। इसीलिए वे कहानी-कला से धीरे-धीरे हटते गए और उपन्यास की व्यापकता में जीवन-जगत् की आंतरिक-बाह्य अर्थध्वनियों, अनुगूँजों, वक्रताओं और प्रकरणों-संदर्भो में पूरी तरह उतरते चले गए। प्रथम पुरुष में जीवन-संघर्ष की कहानी कहने का स्वभाव बनाया और मनोभूमिका से युग की चिंताओं-प्रश्नाकुलताओं को अभिव्यक्ति देने का नया रचना-मुहावरा ईजाद किया। किसी की नक़ल नहीं की। अपनी अक्ल से मौलिकता को टेरा-बटेरा और सृष्टि की है। अपने कमाए सत्य को प्रामाणिक कसौटी माना। मँगनी के सुख-साज से दूर रहे। अपने अनुभव की भट्टी में गले-पके और अंतर्दृष्टि में निखरे।
जोशी जी ने कहानियों का सृजन करते हुए यह अनुभव किया कि उनमें जीवन के वैविध्य और विस्तार के लिए बहुत कम जगह होती है। यह जगह तो रचना-कर्म में उपन्यास के ही पास होती है। इसीलिए वे कहानी-कला से धीरे-धीरे हटते गए और उपन्यास की व्यापकता में जीवन-जगत् की आंतरिक-बाह्य अर्थध्वनियों, अनुगूँजों, वक्रताओं और प्रकरणों-संदर्भो में पूरी तरह उतरते चले गए। प्रथम पुरुष में जीवन-संघर्ष की कहानी कहने का स्वभाव बनाया और मनोभूमिका से युग की चिंताओं-प्रश्नाकुलताओं को अभिव्यक्ति देने का नया रचना-मुहावरा ईजाद किया। किसी की नक़ल नहीं की। अपनी अक्ल से मौलिकता को टेरा-बटेरा और सृष्टि की है। अपने कमाए सत्य को प्रामाणिक कसौटी माना। मँगनी के सुख-साज से दूर रहे। अपने अनुभव की भट्टी में गले-पके और अंतर्दृष्टि में निखरे।