Kankaal (Hindi)

Fiction & Literature, Short Stories, Literary
Cover of the book Kankaal (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
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Author: Premchand ISBN: 9781329908932
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: March 3, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781329908932
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: March 3, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop
Language: Hindi

प्रतिष्ठान के खँडहर में और गंगा-तट की सिकता-भूमि में अनेक शिविर और फूस के झोंपड़े खड़े हैं। माघ की अमावस्या की गोधूली में प्रयाग में बाँध पर प्रभात का-सा जनरव और कोलाहल तथा धर्म लूटने की धूम कम हो गयी है; परन्तु बहुत-से घायल और कुचले हुए अर्धमृतकों की आर्तध्वनि उस पावन प्रदेश को आशीर्वाद दे रही है। स्वयं-सेवक उन्हें सहायता पहुँचाने में व्यस्त हैं। यों तो प्रतिवर्ष यहाँ पर जन-समूह एकत्र होता है, पर अब की बार कुछ विशेष पर्व की घोषणा की गयी थी, इसलिए भीड़ अधिकता से हुई।कितनों के हाथ टूटे, कितनों का सिर फूटा और कितने ही पसलियों की हड्डियाँ गँवाकर, अधोमुख होकर त्रिवेणी को प्रणाम करने लगे। एक नीरव अवसाद संध्या में गंगा के दोनों तट पर खड़े झोंपड़ी पर अपनी कालिमा बिखेर रहा था। नंगी पीठ घोड़ों पर नंगे साधुओं के चढ़ने का जो उत्साह था, जो तलवार की फिकैती दिखलाने की स्पर्धा थी, दर्शक-जनता पर बालू की वर्षा करने का जो उन्माद था, बड़े-बड़े कारचोबी झंडों को आगे से चलने का जो आतंक था, वह सब अब फीका हो चला था।एक छायादार डोंगी जमुना के प्रशांत वक्ष को आकुलित करती हुई गंगा की प्रखर धारा को काटने लगी-उस पर चढ़ने लगी। माझियों ने कसकर दौड़ लगायी। नाव झूँसी के तट पर जा लगी। एक सम्भ्रान्त सज्जन और युवती, साथ में एक नौकर उस पर से उतरे। पुरुष यौवन में होने पर भी कुछ खिन्न-सा था, युवती हँसमुख थी; परन्तु नौकर बड़ा ही गंभीर बना था। यह सम्भवतः उस पुरुष की प्रभावशालिनी शिष्टता की शिक्षा थी। उसके हाथ में एक बाँस की डोलची थी, जिसमें कुछ फल और मिठाइयाँ थीं। साधुओं के शिविरों की पंक्ति सामने थी, वे लोग उसकी ओर चले। सामने से दो मनुष्य बातें करते आ रहे थे-'ऐसी भव्य मूर्ति इस मेले भर में दूसरी नहीं है।''जैसे साक्षात् भगवान् का अंश हो।''अजी ब्रह्मचर्य का तेज है।''अवश्य महात्मा हैं।'वे दोनों चले गये।यह दल उसी शिविर की ओर चल पड़ा, जिधर से दोनों बातें करते आ रहे थे। पटमण्डप के समीप पहुँचने पर देखा, बहुत से दर्शक खड़े हैं। एक विशिष्ट आसन पर एक बीस वर्ष का युवक हलके रंग का काषाय वस्त्र अंग पर डाले बैठा है। जटा-जूट नहीं था, कंधे तक बाल बिखरे थे। आँखें संयम के मद से भरी थीं। पुष्ट भुजाएँ और तेजोमय मुख-मण्डल से आकृति बड़ी प्रभावशालिनी थी। सचमुच, वह युवक तपस्वी भक्ति करने योग्य था।

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प्रतिष्ठान के खँडहर में और गंगा-तट की सिकता-भूमि में अनेक शिविर और फूस के झोंपड़े खड़े हैं। माघ की अमावस्या की गोधूली में प्रयाग में बाँध पर प्रभात का-सा जनरव और कोलाहल तथा धर्म लूटने की धूम कम हो गयी है; परन्तु बहुत-से घायल और कुचले हुए अर्धमृतकों की आर्तध्वनि उस पावन प्रदेश को आशीर्वाद दे रही है। स्वयं-सेवक उन्हें सहायता पहुँचाने में व्यस्त हैं। यों तो प्रतिवर्ष यहाँ पर जन-समूह एकत्र होता है, पर अब की बार कुछ विशेष पर्व की घोषणा की गयी थी, इसलिए भीड़ अधिकता से हुई।कितनों के हाथ टूटे, कितनों का सिर फूटा और कितने ही पसलियों की हड्डियाँ गँवाकर, अधोमुख होकर त्रिवेणी को प्रणाम करने लगे। एक नीरव अवसाद संध्या में गंगा के दोनों तट पर खड़े झोंपड़ी पर अपनी कालिमा बिखेर रहा था। नंगी पीठ घोड़ों पर नंगे साधुओं के चढ़ने का जो उत्साह था, जो तलवार की फिकैती दिखलाने की स्पर्धा थी, दर्शक-जनता पर बालू की वर्षा करने का जो उन्माद था, बड़े-बड़े कारचोबी झंडों को आगे से चलने का जो आतंक था, वह सब अब फीका हो चला था।एक छायादार डोंगी जमुना के प्रशांत वक्ष को आकुलित करती हुई गंगा की प्रखर धारा को काटने लगी-उस पर चढ़ने लगी। माझियों ने कसकर दौड़ लगायी। नाव झूँसी के तट पर जा लगी। एक सम्भ्रान्त सज्जन और युवती, साथ में एक नौकर उस पर से उतरे। पुरुष यौवन में होने पर भी कुछ खिन्न-सा था, युवती हँसमुख थी; परन्तु नौकर बड़ा ही गंभीर बना था। यह सम्भवतः उस पुरुष की प्रभावशालिनी शिष्टता की शिक्षा थी। उसके हाथ में एक बाँस की डोलची थी, जिसमें कुछ फल और मिठाइयाँ थीं। साधुओं के शिविरों की पंक्ति सामने थी, वे लोग उसकी ओर चले। सामने से दो मनुष्य बातें करते आ रहे थे-'ऐसी भव्य मूर्ति इस मेले भर में दूसरी नहीं है।''जैसे साक्षात् भगवान् का अंश हो।''अजी ब्रह्मचर्य का तेज है।''अवश्य महात्मा हैं।'वे दोनों चले गये।यह दल उसी शिविर की ओर चल पड़ा, जिधर से दोनों बातें करते आ रहे थे। पटमण्डप के समीप पहुँचने पर देखा, बहुत से दर्शक खड़े हैं। एक विशिष्ट आसन पर एक बीस वर्ष का युवक हलके रंग का काषाय वस्त्र अंग पर डाले बैठा है। जटा-जूट नहीं था, कंधे तक बाल बिखरे थे। आँखें संयम के मद से भरी थीं। पुष्ट भुजाएँ और तेजोमय मुख-मण्डल से आकृति बड़ी प्रभावशालिनी थी। सचमुच, वह युवक तपस्वी भक्ति करने योग्य था।

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