संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है। यदि भिन्न-भिन्न देशों की तुलना की जाय तो मालूम होगा कि सारा संसार सहिष्णु एवं निरीह भारत का जितना ऋणी है उतना किसी और देश का नहीं।.... पुराने समय में और आजकल भी बहुत से अनोखे तत्त्व एक जाति से दूसरी जाति में पहुंचे हैं, और यह भी ठीक है कि किसी-किसी राष्ट्र की गतिशील जीवन तरंगों ने महान शक्तिशाली सत्य के बीजों को चारों ओर बिखेरा है। - स्वामी विवेकानन्द
संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है। यदि भिन्न-भिन्न देशों की तुलना की जाय तो मालूम होगा कि सारा संसार सहिष्णु एवं निरीह भारत का जितना ऋणी है उतना किसी और देश का नहीं।.... पुराने समय में और आजकल भी बहुत से अनोखे तत्त्व एक जाति से दूसरी जाति में पहुंचे हैं, और यह भी ठीक है कि किसी-किसी राष्ट्र की गतिशील जीवन तरंगों ने महान शक्तिशाली सत्य के बीजों को चारों ओर बिखेरा है। - स्वामी विवेकानन्द