Kaam (Hindi Rligious)

काम

Nonfiction, Reference & Language, Foreign Languages, Indic & South Asian Languages, Religion & Spirituality, Eastern Religions, Hinduism, Health & Well Being, Self Help, Self Improvement
Cover of the book Kaam (Hindi Rligious) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी, Bhartiya Sahitya Inc.
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी ISBN: 9781613014257
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: May 15, 2014
Imprint: Language: Hindi
Author: Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
ISBN: 9781613014257
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: May 15, 2014
Imprint:
Language: Hindi
'काम' शब्द बड़ा अनोखा है और इस शब्द को लेकर अनेक 'मत' और 'अर्थ' हमारे सामने आते हैं। परम्परा तो काम की निन्दा की गयी है पर यदि हम गहराई से दृष्टि डालें तो देखते हैं कि रामचरितमानस तथा हमारे अन्य धर्मग्रन्थों में काम की प्रवृत्ति और उसके स्वरूप का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, वह बड़ा ही गंभीर है। यदि हम विचार करके देखें तो यहाँ उपस्थित हम-सब एवं सम्पूर्ण समाज के मूल में ईश्वर तो है ही, पर संसार के निर्माण में हमें काम की वृत्ति ही दिखायी देती है। काम की वृत्ति के विविध पक्ष हैं। काम क्या दुष्ट वृत्ति ही है? क्या वह 'खल' और निन्दनीय है? जैसा कि 'मानस और अन्य ग्रन्थों में, अनेकानेक स्थलों में उसके बारे में वर्णन करते हुए कहा गया है। निःसंदेह, काम का एक पक्ष यह भी है। पर हम देखते हैं कि काम, सृष्टि के सृजन और विस्तार में सहायक तो है ही, मनुष्य के अंतःकरण में जो आनंद और रस की पिपासा है, उसकी अनुभूति का मानो एक साकार रूप भी है। इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि काम निंदनीय ही नहीं, वंदनीय भी है। इसलिए यदि किसी प्रसंग-विशेष में काम की निंदा की गयी है तो उसका एक उद्देश्य है और उसी प्रकार उसकी प्रशंसा के पीछे भी एक निहित उद्देश्य ही उसका कारण है।
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
'काम' शब्द बड़ा अनोखा है और इस शब्द को लेकर अनेक 'मत' और 'अर्थ' हमारे सामने आते हैं। परम्परा तो काम की निन्दा की गयी है पर यदि हम गहराई से दृष्टि डालें तो देखते हैं कि रामचरितमानस तथा हमारे अन्य धर्मग्रन्थों में काम की प्रवृत्ति और उसके स्वरूप का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, वह बड़ा ही गंभीर है। यदि हम विचार करके देखें तो यहाँ उपस्थित हम-सब एवं सम्पूर्ण समाज के मूल में ईश्वर तो है ही, पर संसार के निर्माण में हमें काम की वृत्ति ही दिखायी देती है। काम की वृत्ति के विविध पक्ष हैं। काम क्या दुष्ट वृत्ति ही है? क्या वह 'खल' और निन्दनीय है? जैसा कि 'मानस और अन्य ग्रन्थों में, अनेकानेक स्थलों में उसके बारे में वर्णन करते हुए कहा गया है। निःसंदेह, काम का एक पक्ष यह भी है। पर हम देखते हैं कि काम, सृष्टि के सृजन और विस्तार में सहायक तो है ही, मनुष्य के अंतःकरण में जो आनंद और रस की पिपासा है, उसकी अनुभूति का मानो एक साकार रूप भी है। इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि काम निंदनीय ही नहीं, वंदनीय भी है। इसलिए यदि किसी प्रसंग-विशेष में काम की निंदा की गयी है तो उसका एक उद्देश्य है और उसी प्रकार उसकी प्रशंसा के पीछे भी एक निहित उद्देश्य ही उसका कारण है।

More books from Bhartiya Sahitya Inc.

Cover of the book Isha Masih Ki Vani (Hindi Wisdom-bites) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Bhaktiyog by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Sri Shankaracharya Ki Vani (Hindi Wisdom-bites) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-35 by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Kamayani (Hindi Epic) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Nastik (Hindi Novel by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Sugreev Aur Vibhishan (Hindi Religious) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Urvashi (Hindi Epic) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-30 by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Sambhal Kar Rakhna (Hindi Gazal) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Meri Kahaniyan-Mannu Bhandari by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-42 by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Kati Patang (Hindi Novel) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Vikrant Aur Sholo Ki Nagari (Hindi Novel) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
Cover of the book Sri Ramchandra Ki Vani (Hindi Self-help) by Shri Ram Kinkar Ji, श्री रामकिंकर जी
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy