हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द का योगदान केवल कहानियों अथवा उपन्यासों तक ही सीमित नहीं है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है कि किशोर-किशोरियों के लिए ये न केवल ज्ञानवर्द्धक, प्रत्युत मनोरंजक भी सिद्ध होंगे। इन्हें पढ़ते समय पाठकों को इतना ध्यान अवश्य रखना होगा कि कुछ सन्दर्भित तथ्य आज सर्वथा परिवर्तित हो चुके हैं। लेखक की युगानुभूति को परिवर्तित करना एक अनाधिकार चेष्टा ही मानी जाती, अतः ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ ही हमारा लक्ष्य रहा है।
हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द का योगदान केवल कहानियों अथवा उपन्यासों तक ही सीमित नहीं है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है कि किशोर-किशोरियों के लिए ये न केवल ज्ञानवर्द्धक, प्रत्युत मनोरंजक भी सिद्ध होंगे। इन्हें पढ़ते समय पाठकों को इतना ध्यान अवश्य रखना होगा कि कुछ सन्दर्भित तथ्य आज सर्वथा परिवर्तित हो चुके हैं। लेखक की युगानुभूति को परिवर्तित करना एक अनाधिकार चेष्टा ही मानी जाती, अतः ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ ही हमारा लक्ष्य रहा है।