धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है। इस पेचीदगी के कारण धर्म का वास्तविक तत्व जानने वाले जिज्ञासुओं को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मानवीय बौद्धिक विकास के साथ-साथ 'क्यों और कैसे’ का बहुत प्राबल्य हुआ है। इस युग का मनुष्य सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं हो सकता कि अमुक पुस्तक में ऐसा लिखा है या अमुक व्यक्ति ने ऐसा कहा है। आज तो तर्क और प्रमाणों से युक्त बुद्धि संगत बात ही स्वीकार की जाती है।
धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है। इस पेचीदगी के कारण धर्म का वास्तविक तत्व जानने वाले जिज्ञासुओं को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मानवीय बौद्धिक विकास के साथ-साथ 'क्यों और कैसे’ का बहुत प्राबल्य हुआ है। इस युग का मनुष्य सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं हो सकता कि अमुक पुस्तक में ऐसा लिखा है या अमुक व्यक्ति ने ऐसा कहा है। आज तो तर्क और प्रमाणों से युक्त बुद्धि संगत बात ही स्वीकार की जाती है।