Author: | Dinesh Kumar Jangra DJ | ISBN: | 1230000747110 |
Publisher: | OnlineGatha | Publication: | October 29, 2015 |
Imprint: | Paperback , E-book | Language: | Hindi |
Author: | Dinesh Kumar Jangra DJ |
ISBN: | 1230000747110 |
Publisher: | OnlineGatha |
Publication: | October 29, 2015 |
Imprint: | Paperback , E-book |
Language: | Hindi |
'प्रेम की पोथी' काव्य और फोटोग्राफी के माध्यम से विभिन्न संदर्भों में प्रेम की व्याख्या करने वाली इस तरह की शायद पहली पुस्तक है। इसमें कर्तव्य, राष्ट्र, धर्म, भाषा, शांति, पिता, माँ, बहन, भाई, मित्र, रिश्तेदार, प्रेमिका, न्याय, पर्यावरण, बचपन, निर्धन, विरह, एकतरफा प्रेम आदि रिश्तों, भावनाओं, संवेदनाओं को सम्मिलित किया गया है। इन सबके अलावा 'फकीरी प्रेम' अनुभाग में पंद्रह आध्यात्मिक रचनाएं हैं जो प्रेम को और भी अधिक व्यापक स्तर पर सोच कर लिखी गई है। पुस्तक की आखिरी रचना ‘कविता कैसे बनती है?‘ पुस्तक की लेखन प्रक्रिया से अवगत करवाने का प्रयास है।
रचनाकार ने पुस्तक से मिलने वाली रॉयल्टी का नब्बे प्रतिशत भाग कैंसर के कारण मृत्युग्रस्त अपने दादा श्री मनीराम और पिता श्री सुबे सिंह को श्रद्धांजलि के तौर पर कैंसर रोकथाम के लिए दान करने का निश्चय किया है। इस पुस्तक का उदेश्य आप रचनाकार की इस कविता से जान सकते हैं-
प्रेम की पोथी का उद्देश्य
तारीफें बटोरना, वाहवाही लूटना,ये मेरी कविताओं का, मकसद कतई नहीं है,
देश दुनिया को थोड़ा तो बदलूं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
वाहवाही-तारीफें तो कभी-कभी लोग झूठी भी कर देते हैं,
शब्दों से दिलों को छुलूं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
इश्क में पड़ कर तो हर कोई करने लगता है शायरी,
मजदुर, किसान और सैनिकों का दर्द बता पाऊं,तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
धर्म-जात के नाम पर आज भी लड़ते हैं हम,
मजहब से दिलों को जोड़ पाऊं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
मैं अदना सा इंसान, मेरी कोई औकात नहीं,
देश को थोड़ा बेहतर बना पाऊं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
'प्रेम की पोथी' काव्य और फोटोग्राफी के माध्यम से विभिन्न संदर्भों में प्रेम की व्याख्या करने वाली इस तरह की शायद पहली पुस्तक है। इसमें कर्तव्य, राष्ट्र, धर्म, भाषा, शांति, पिता, माँ, बहन, भाई, मित्र, रिश्तेदार, प्रेमिका, न्याय, पर्यावरण, बचपन, निर्धन, विरह, एकतरफा प्रेम आदि रिश्तों, भावनाओं, संवेदनाओं को सम्मिलित किया गया है। इन सबके अलावा 'फकीरी प्रेम' अनुभाग में पंद्रह आध्यात्मिक रचनाएं हैं जो प्रेम को और भी अधिक व्यापक स्तर पर सोच कर लिखी गई है। पुस्तक की आखिरी रचना ‘कविता कैसे बनती है?‘ पुस्तक की लेखन प्रक्रिया से अवगत करवाने का प्रयास है।
रचनाकार ने पुस्तक से मिलने वाली रॉयल्टी का नब्बे प्रतिशत भाग कैंसर के कारण मृत्युग्रस्त अपने दादा श्री मनीराम और पिता श्री सुबे सिंह को श्रद्धांजलि के तौर पर कैंसर रोकथाम के लिए दान करने का निश्चय किया है। इस पुस्तक का उदेश्य आप रचनाकार की इस कविता से जान सकते हैं-
प्रेम की पोथी का उद्देश्य
तारीफें बटोरना, वाहवाही लूटना,ये मेरी कविताओं का, मकसद कतई नहीं है,
देश दुनिया को थोड़ा तो बदलूं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
वाहवाही-तारीफें तो कभी-कभी लोग झूठी भी कर देते हैं,
शब्दों से दिलों को छुलूं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
इश्क में पड़ कर तो हर कोई करने लगता है शायरी,
मजदुर, किसान और सैनिकों का दर्द बता पाऊं,तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
धर्म-जात के नाम पर आज भी लड़ते हैं हम,
मजहब से दिलों को जोड़ पाऊं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।
मैं अदना सा इंसान, मेरी कोई औकात नहीं,
देश को थोड़ा बेहतर बना पाऊं, तो समझूंगा मेरी कविताएँ सफल हुई।