विष्णु प्रभाकर के जीवन पर गांधी जी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रूझान कांग्रेस की ओर हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासागर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आज़ादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में इनकी अपनी विशिष्ट पहचान रही। इनकी कहानियों में देशभक्ति, राष्ट्रीयता और समाज के उत्थान का वास्तविक प्रतिबिम्ब झलकता है। कथाकार विष्णु प्रभाकर ने प्रस्तुत संकलन में अपनी जिन कहानियों को प्रस्तुत किया है, वे हैं : ‘बँटवारा, ‘क्रान्तिकारी, ‘पर्वत से ऊंचा’, ‘ठेका’, ‘पिचका हुआ केला और क्रान्ति’, ‘चितकबरी बिल्ली’, ‘एक मौत समन्दर किनारे’, ‘एक और कुन्ती’, ‘पैड़ियों पर उठते पदचाप’ तथा ‘पाषाणी’।
विष्णु प्रभाकर के जीवन पर गांधी जी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रूझान कांग्रेस की ओर हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासागर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आज़ादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में इनकी अपनी विशिष्ट पहचान रही। इनकी कहानियों में देशभक्ति, राष्ट्रीयता और समाज के उत्थान का वास्तविक प्रतिबिम्ब झलकता है। कथाकार विष्णु प्रभाकर ने प्रस्तुत संकलन में अपनी जिन कहानियों को प्रस्तुत किया है, वे हैं : ‘बँटवारा, ‘क्रान्तिकारी, ‘पर्वत से ऊंचा’, ‘ठेका’, ‘पिचका हुआ केला और क्रान्ति’, ‘चितकबरी बिल्ली’, ‘एक मौत समन्दर किनारे’, ‘एक और कुन्ती’, ‘पैड़ियों पर उठते पदचाप’ तथा ‘पाषाणी’।