Mansarovar - Part 5 (Hindi)

Fiction & Literature, Literary Theory & Criticism, Literary
Cover of the book Mansarovar - Part 5 (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Premchand ISBN: 9781310402036
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: September 22, 2014
Imprint: Smashwords Edition Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781310402036
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: September 22, 2014
Imprint: Smashwords Edition
Language: Hindi

मानसरोवर - भाग 5
मंदिर
निमंत्रण
रामलीला
कामना तरु
हिंसा परम धर्म
बहिष्कार
चोरी
लांछन
सती
कजाकी
आसुँओं की होली
अग्नि-समाधि
सुजान भगत
पिसनहारी का कुआँ
सोहाग का शव
आत्म-संगीत
एक्ट्रेस
ईश्वरीय न्याय
ममता
मंत्र
प्रायश्चित
कप्तान साहब
इस्तीफा
---------------------------
मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का नन्हा-सा लाल पड़ा कराह रहा था। आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते-खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ ? एक बार पानी का एक घूँट मुँह में लिया था; पर कंठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया की विपत्ति का वारपार न था। साल भर के भीतर दो बालक गंगा जी की गोद में सौंप चुकी थी। पतिदेव पहले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था। हाय ! क्या ईश्वर इसे भी इसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं ?

यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते थे। इस बालक को वह क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता। उसके लिए उसने नन्ही-सी खुरपी और नन्ही-सी खाँची बनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता, ‘अम्माँ, हमें भी बड़ी-सी खुरपी बनवा दो, हम बहुत-सी घास छीलेंगे,तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्माँ,मैं घास बेच लाऊंगा।

‘मां पूछती- ‘मेरे लिए क्या-क्या लाओगे, बेटा ? ‘

जियावन लाल-लाल साड़ियों का वादा करता। अपने लिए बहुत-सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली-भोली बातें इस समय याद आ-आकर माता के हृदय को शूल के समान बेध रही थीं। जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है; पर किसकी डीठ है ? इस विधवा का भी संसार में कोई वैरी है ? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में रख देती। क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता ? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय ! किससे पूछे, क्या करे ?

तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिंता-व्यथित चंचल मन कोठे-कोठे दौड़ रहा था। किस देवी की शरण जाए, किस देवता की मनौती करे, इसी सोच में पड़े-पड़े उसे एक झपकी आ गयी। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेर कर कहता है, ‘रो मत, सुखिया ! तेरा बालक अच्छा हो जायगा। कल ठाकुर जी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे।‘ यह कहकर वह चला गया। सुखिया की आँख खुल गयी। अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे। इसमें सुखिया को ज़रा भी संदेह न हुआ। उन्हें अब भी मेरी सुधि है, यह सोच कर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रृद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजग हो गयीं। उसने बालक को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली, ‘भगवान ! मेरा बालक अच्छा हो जाए, तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी। अनाथ विधवा पर दया करो।‘

View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart

मानसरोवर - भाग 5
मंदिर
निमंत्रण
रामलीला
कामना तरु
हिंसा परम धर्म
बहिष्कार
चोरी
लांछन
सती
कजाकी
आसुँओं की होली
अग्नि-समाधि
सुजान भगत
पिसनहारी का कुआँ
सोहाग का शव
आत्म-संगीत
एक्ट्रेस
ईश्वरीय न्याय
ममता
मंत्र
प्रायश्चित
कप्तान साहब
इस्तीफा
---------------------------
मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का नन्हा-सा लाल पड़ा कराह रहा था। आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते-खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ ? एक बार पानी का एक घूँट मुँह में लिया था; पर कंठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया की विपत्ति का वारपार न था। साल भर के भीतर दो बालक गंगा जी की गोद में सौंप चुकी थी। पतिदेव पहले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था। हाय ! क्या ईश्वर इसे भी इसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं ?

यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते थे। इस बालक को वह क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता। उसके लिए उसने नन्ही-सी खुरपी और नन्ही-सी खाँची बनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता, ‘अम्माँ, हमें भी बड़ी-सी खुरपी बनवा दो, हम बहुत-सी घास छीलेंगे,तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्माँ,मैं घास बेच लाऊंगा।

‘मां पूछती- ‘मेरे लिए क्या-क्या लाओगे, बेटा ? ‘

जियावन लाल-लाल साड़ियों का वादा करता। अपने लिए बहुत-सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली-भोली बातें इस समय याद आ-आकर माता के हृदय को शूल के समान बेध रही थीं। जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है; पर किसकी डीठ है ? इस विधवा का भी संसार में कोई वैरी है ? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में रख देती। क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता ? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय ! किससे पूछे, क्या करे ?

तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिंता-व्यथित चंचल मन कोठे-कोठे दौड़ रहा था। किस देवी की शरण जाए, किस देवता की मनौती करे, इसी सोच में पड़े-पड़े उसे एक झपकी आ गयी। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेर कर कहता है, ‘रो मत, सुखिया ! तेरा बालक अच्छा हो जायगा। कल ठाकुर जी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे।‘ यह कहकर वह चला गया। सुखिया की आँख खुल गयी। अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे। इसमें सुखिया को ज़रा भी संदेह न हुआ। उन्हें अब भी मेरी सुधि है, यह सोच कर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रृद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजग हो गयीं। उसने बालक को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली, ‘भगवान ! मेरा बालक अच्छा हो जाए, तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी। अनाथ विधवा पर दया करो।‘

More books from Sai ePublications & Sai Shop

Cover of the book Grah Niti Aur Naya Vivah (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 4 (Hindi) by Premchand
Cover of the book The Fugitive by Premchand
Cover of the book Meri Pahli Rachna (Hindi) by Premchand
Cover of the book Eidgah Aur Gulli Danda (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 3 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Ramcharitmanas by Premchand
Cover of the book Path Ke Davedar (Hindi) by Premchand
Cover of the book Kankaal (Hindi) by Premchand
Cover of the book Gaban (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 6 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Sadhana by Premchand
Cover of the book Alankar (Hindi) by Premchand
Cover of the book Namak ka Droga (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 2 (Hindi) by Premchand
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy