Mansarovar - Part 4 (मानसरोवर - भाग 4)

Fiction & Literature, Literary
Cover of the book Mansarovar - Part 4 (मानसरोवर - भाग 4) by Premchand, Sai ePublications
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Author: Premchand ISBN: 9781329908406
Publisher: Sai ePublications Publication: December 19, 2016
Imprint: Sai ePublications Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781329908406
Publisher: Sai ePublications
Publication: December 19, 2016
Imprint: Sai ePublications
Language: Hindi

मानसरोवर - भाग 4

प्रेरणा
सद्गति
तगादा
दो कब्रें
ढपोरसंख
डिमॉन्सट्रेशन
दारोगाजी
अभिलाषा
खुचड़
आगा-पीछा
प्रेम का उदय
सती
मृतक-भोज
भूत
सवा सेर गेहूँ
सभ्यता का रहस्य
समस्या
दो सखियाँ
स्मृति का पुजारी

------------------------

मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा ऊधामी कोई लड़का न था, बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से साबका न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनन्द आता था। ऐसे-ऐसे षडयंत्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे बंधन बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था। खुदाई फौजदारों की एक फौज बना ली थी और उसके आतंक से शाला पर शासन करता था। मुख्य अधिष्ठाता की आज्ञा टल जाय, मगर क्या मजाल कि कोई उसके हुक्म की अवज्ञा कर सके। स्कूल के चपरासी और अर्दली उससे थर-थर काँपते थे। इन्स्पेक्टर का मुआइना होने वाला था, मुख्य अधिष्ठाता ने हुक्म दिया कि लड़के निर्दिष्ट समय से आधा घंटा पहले आ जायँ। मतलब यह था कि लड़कों को मुआइने के बारे में कुछ जरूरी बातें बता दी जायँ, मगर दस बज गये, इन्स्पेक्टर साहब आकर बैठ गये, और मदरसे में एक लड़का भी नहीं। ग्यारह बजे सब छात्र इस तरह निकल पड़े, जैसे कोई पिंजरा खोल दिया गया हो। इन्स्पेक्टर साहब ने कैफियत में लिखा ड़िसिप्लिन बहुत खराब है। प्रिंसिपल साहब की किरकिरी हुई, अध्यापक बदनाम हुए और यह सारी शरारत सूर्यप्रकाश की थी, मगर बहुत पूछ-ताछ करने पर भी किसी ने सूर्यप्रकाश का नाम तक न लिया। मुझे अपनी संचालन-विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कालेज में इस विषय में मैंने ख्याति प्राप्त की थी, मगर यहाँ मेरा सारा संचालन-कौशल जैसे मोर्चा खा गया था। कुछ अक्ल ही काम न करती कि शैतान को कैसे सन्मार्ग पर लायें। कई बार अध्यापकों की बैठक हुई, पर यह गिरह न खुली। नई शिक्षा-विधि के अनुसार मैं दंडनीति का पक्षपाती न था, मगर यहाँ हम इस नीति से केवल इसलिए विरक्त थे कि कहीं उपचार से भी रोग असाधय न हो जाय। सूर्यप्रकाश को स्कूल से निकाल देने का प्रस्ताव भी किया गया, पर इसे अपनी अयोग्यता का प्रमाण समझकर हम इस नीति का व्यवहार करने का साहस न कर सके।

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मानसरोवर - भाग 4

प्रेरणा
सद्गति
तगादा
दो कब्रें
ढपोरसंख
डिमॉन्सट्रेशन
दारोगाजी
अभिलाषा
खुचड़
आगा-पीछा
प्रेम का उदय
सती
मृतक-भोज
भूत
सवा सेर गेहूँ
सभ्यता का रहस्य
समस्या
दो सखियाँ
स्मृति का पुजारी

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मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा ऊधामी कोई लड़का न था, बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से साबका न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनन्द आता था। ऐसे-ऐसे षडयंत्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे बंधन बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था। खुदाई फौजदारों की एक फौज बना ली थी और उसके आतंक से शाला पर शासन करता था। मुख्य अधिष्ठाता की आज्ञा टल जाय, मगर क्या मजाल कि कोई उसके हुक्म की अवज्ञा कर सके। स्कूल के चपरासी और अर्दली उससे थर-थर काँपते थे। इन्स्पेक्टर का मुआइना होने वाला था, मुख्य अधिष्ठाता ने हुक्म दिया कि लड़के निर्दिष्ट समय से आधा घंटा पहले आ जायँ। मतलब यह था कि लड़कों को मुआइने के बारे में कुछ जरूरी बातें बता दी जायँ, मगर दस बज गये, इन्स्पेक्टर साहब आकर बैठ गये, और मदरसे में एक लड़का भी नहीं। ग्यारह बजे सब छात्र इस तरह निकल पड़े, जैसे कोई पिंजरा खोल दिया गया हो। इन्स्पेक्टर साहब ने कैफियत में लिखा ड़िसिप्लिन बहुत खराब है। प्रिंसिपल साहब की किरकिरी हुई, अध्यापक बदनाम हुए और यह सारी शरारत सूर्यप्रकाश की थी, मगर बहुत पूछ-ताछ करने पर भी किसी ने सूर्यप्रकाश का नाम तक न लिया। मुझे अपनी संचालन-विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कालेज में इस विषय में मैंने ख्याति प्राप्त की थी, मगर यहाँ मेरा सारा संचालन-कौशल जैसे मोर्चा खा गया था। कुछ अक्ल ही काम न करती कि शैतान को कैसे सन्मार्ग पर लायें। कई बार अध्यापकों की बैठक हुई, पर यह गिरह न खुली। नई शिक्षा-विधि के अनुसार मैं दंडनीति का पक्षपाती न था, मगर यहाँ हम इस नीति से केवल इसलिए विरक्त थे कि कहीं उपचार से भी रोग असाधय न हो जाय। सूर्यप्रकाश को स्कूल से निकाल देने का प्रस्ताव भी किया गया, पर इसे अपनी अयोग्यता का प्रमाण समझकर हम इस नीति का व्यवहार करने का साहस न कर सके।

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