जिससे प्रकाश मिले, ज्ञान मिले, सही मार्ग दीख जाय, अपना कर्तव्य दीख जाय, अपना ध्येय दीख जाय, वह गुरु-तत्त्व है। वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है। वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट हो जाय, उसी को अपना गुरु मानना चाहिये। वास्तव में भगवान् ही सबके गुरु हैं; क्योंकि संसार में जिस-किसी को ज्ञान, प्रकाश मिलता है वह भगवान से ही मिलता है। वह ज्ञान जहाँ-जहाँ से, जिस-जिससे प्रकट होता है अर्थात् जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट होता है वह गुरु कहलाता है
जिससे प्रकाश मिले, ज्ञान मिले, सही मार्ग दीख जाय, अपना कर्तव्य दीख जाय, अपना ध्येय दीख जाय, वह गुरु-तत्त्व है। वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है। वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट हो जाय, उसी को अपना गुरु मानना चाहिये। वास्तव में भगवान् ही सबके गुरु हैं; क्योंकि संसार में जिस-किसी को ज्ञान, प्रकाश मिलता है वह भगवान से ही मिलता है। वह ज्ञान जहाँ-जहाँ से, जिस-जिससे प्रकट होता है अर्थात् जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट होता है वह गुरु कहलाता है