प्रारब्ध है पूर्व जन्म के कर्मों का फल। फल तो भोगना ही पड़ता है, परन्तु पुरुषार्थ से उसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है अथवा यह भी कह सकते हैं कि उसको सहन करने की शक्ति बढ़ाई जा सकती है। ‘‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’’ का यही कथानक है। अकबर के जीवन के एक पृष्ठ को आधार बनाकर रचा गया अत्यन्त रोचक उपन्यास। मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है। इस कारण भाग्य (प्रारब्ध) के विरुद्ध जब वह पुरुषार्थ करता है तो उसके परिणाम (शुभ अथवा अशुभ) का उत्तरदायित्व उसका अपना होना है। तब वह भाग्य पर दोषारोपण नहीं कर सकता। ‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’ का यही कथानक है।।
प्रारब्ध है पूर्व जन्म के कर्मों का फल। फल तो भोगना ही पड़ता है, परन्तु पुरुषार्थ से उसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है अथवा यह भी कह सकते हैं कि उसको सहन करने की शक्ति बढ़ाई जा सकती है। ‘‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’’ का यही कथानक है। अकबर के जीवन के एक पृष्ठ को आधार बनाकर रचा गया अत्यन्त रोचक उपन्यास। मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है। इस कारण भाग्य (प्रारब्ध) के विरुद्ध जब वह पुरुषार्थ करता है तो उसके परिणाम (शुभ अथवा अशुभ) का उत्तरदायित्व उसका अपना होना है। तब वह भाग्य पर दोषारोपण नहीं कर सकता। ‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’ का यही कथानक है।।