केशी राक्षस से संत्रस्त उर्वशी अप्सरा का राजा पुरूरवा उद्धार करता है। वे एक दूसरे पर आकर्षित हैं। उर्वशी राजा के प्रणय पर मंत्रमुग्ध है। विदूषक माणवक की त्रुटी से उर्वशी का एक विशिष्ट 'प्रणयपत्र' देवी औशीनरी को हस्तगत हो जाता है। राजा उससे डाँट खा कर उसका कोप शांत करता है। उधर ..... इन्द्रसभा में आचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित एक विशेष नाटक में उर्वशी 'पुरुषोत्तम विष्णु' के स्थान पर 'पुरूरवा' नाम का उच्चारण कर देती है। तब क्रोधित भरतमुनि उर्वशी को शाप दे देते हैं कि- 'वह पुत्रदर्शन तक मृत्युलोक में ही जीवन यापन करे।' उसी समय से उर्वशी राजा के पास रहने लगती है।
केशी राक्षस से संत्रस्त उर्वशी अप्सरा का राजा पुरूरवा उद्धार करता है। वे एक दूसरे पर आकर्षित हैं। उर्वशी राजा के प्रणय पर मंत्रमुग्ध है। विदूषक माणवक की त्रुटी से उर्वशी का एक विशिष्ट 'प्रणयपत्र' देवी औशीनरी को हस्तगत हो जाता है। राजा उससे डाँट खा कर उसका कोप शांत करता है। उधर ..... इन्द्रसभा में आचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित एक विशेष नाटक में उर्वशी 'पुरुषोत्तम विष्णु' के स्थान पर 'पुरूरवा' नाम का उच्चारण कर देती है। तब क्रोधित भरतमुनि उर्वशी को शाप दे देते हैं कि- 'वह पुत्रदर्शन तक मृत्युलोक में ही जीवन यापन करे।' उसी समय से उर्वशी राजा के पास रहने लगती है।