Author: | Prem Chand | ISBN: | 9789352961146 |
Publisher: | Diamond Pocket Books Pvt ltd. | Publication: | March 23, 2019 |
Imprint: | Language: | English |
Author: | Prem Chand |
ISBN: | 9789352961146 |
Publisher: | Diamond Pocket Books Pvt ltd. |
Publication: | March 23, 2019 |
Imprint: | |
Language: | English |
ग्रामीण परिवेश को लेकर उफंची तथा नीची जाति संस्कृति को उकेरती यह कहानी आम आदमी की दिल की गहराई तक उतर जाती है। कहानी की नायिका गंगी गांव के ठाकुरों के डर से अपने बीमार पति को स्वच्छ पानी तक नहीं पिला पाती है। इस विवशता को पाठक अपने अंतर तक महसूस करता है, यही लेखक की महानता का परिचायक है। कितने दुर्भाग्य की बात है कि यह कुप्रथा आज भी स्वतंत्रा भारत के हजारों गांवों में बदस्तूर जारी है। इसके अलावा हम इस पुस्तक में मुंशी प्रेमचंद की अन्य कहानियों को भी शामिल कर रहे हैं जो न केवल सरल भाषा में लिखी गयी हैं बल्कि पढ़ने वालों को नई प्रेरणा और सीख भी देती हैं।
दुनिया में प्रथम पंक्ति के सुविख्यात लेखक प्रेमचंद की कहानियों का यह भाग उनकी मूल रचना है। इसमें किसी तरह की कांट-छांट नहीं की गयी है। हिन्दी साहित्य के यशस्वी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं ने कोटि-कोटि हिन्दी पाठकों के हृदय को तो छुआ ही है, साथ-ही-साथ अन्य भाषाभाषियों को भी प्रभावित किया है। उनकी रचनाएं साहित्य की सबलतम निध् िहैं। उनकी कहानियों को मानसरोवर के आठ खंडों में समाहित किया गया है, जिसे डायमंड पाकेट बुक्स ने आकर्षक आवरण में चार भागों में प्रकाशित किया है। इस खंड में हम उनकी यादगार कहानी ठाकुर का कुआं को प्रस्तुत कर रहे हैं।
ग्रामीण परिवेश को लेकर उफंची तथा नीची जाति संस्कृति को उकेरती यह कहानी आम आदमी की दिल की गहराई तक उतर जाती है। कहानी की नायिका गंगी गांव के ठाकुरों के डर से अपने बीमार पति को स्वच्छ पानी तक नहीं पिला पाती है। इस विवशता को पाठक अपने अंतर तक महसूस करता है, यही लेखक की महानता का परिचायक है। कितने दुर्भाग्य की बात है कि यह कुप्रथा आज भी स्वतंत्रा भारत के हजारों गांवों में बदस्तूर जारी है। इसके अलावा हम इस पुस्तक में मुंशी प्रेमचंद की अन्य कहानियों को भी शामिल कर रहे हैं जो न केवल सरल भाषा में लिखी गयी हैं बल्कि पढ़ने वालों को नई प्रेरणा और सीख भी देती हैं।
दुनिया में प्रथम पंक्ति के सुविख्यात लेखक प्रेमचंद की कहानियों का यह भाग उनकी मूल रचना है। इसमें किसी तरह की कांट-छांट नहीं की गयी है। हिन्दी साहित्य के यशस्वी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं ने कोटि-कोटि हिन्दी पाठकों के हृदय को तो छुआ ही है, साथ-ही-साथ अन्य भाषाभाषियों को भी प्रभावित किया है। उनकी रचनाएं साहित्य की सबलतम निध् िहैं। उनकी कहानियों को मानसरोवर के आठ खंडों में समाहित किया गया है, जिसे डायमंड पाकेट बुक्स ने आकर्षक आवरण में चार भागों में प्रकाशित किया है। इस खंड में हम उनकी यादगार कहानी ठाकुर का कुआं को प्रस्तुत कर रहे हैं।