Sujaan Bhagat (सुजान भगत)

Kids, Teen, Short Stories, Fiction & Literature, Classics
Cover of the book Sujaan Bhagat (सुजान भगत) by Premchand, General Press
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Author: Premchand ISBN: 9788180320729
Publisher: General Press Publication: August 1, 2015
Imprint: Global Digital Press Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9788180320729
Publisher: General Press
Publication: August 1, 2015
Imprint: Global Digital Press
Language: Hindi

सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं। दिव्य समाज की भाँति वह पहले अपने भोग-विलास की ओर नहीं दौड़ते। सुजान की खेती में कई साल से कंचन बरस रहा था। मेहनत तो गाँव के सभी किसान करते थे, पर सुजान के चंद्रमा बली थे, ऊसर में भी दाना छींट आता तो कुछ-न-कुछ पैदा हो जाता था। तीन वर्ष लगातार ईख लगती गई। उधर गुड़ का भाव तेज़ था। कोई दो-ढाई हज़ार हाथ में आ गए, बस चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पड़ी। साधु-संतों का आदर-सत्कार होने लगा, द्वार पर धूनी जलने लगी, क़ानूनगो इलाक़े में आते तो सुजान महतो के चौपाल में ठहरते। हलके के हैड कांस्टेबिल, थानेदार, शिक्षा-विभाग का अफ़सर, एक-न-एक उस चौपाल में पड़ा रहता। महतो मारे ख़ुशी के फूले न समाते। धन्य भाग! उसके द्वार पर अब इतने बड़े-बड़े हाकिम आकर ठहरते हैं, जिन हाकिमों के सामने उसका मुँह न खुलता था, उन्हीं की अब ‘महतोमहतो’ करते ज़ुबान सूखती थी। कभी-कभी भजन-भाव हो जाता। एक महात्मा ने डौल अच्छा देखा तो गाँव में आसन जमा दिया। गाँजे और चरस की बहार उड़ने लगी। एक ढोलक आई, मंजीरे मँगाए गए, सत्संग होने लगा। यह सब सुजान के दम का जलूस था।

घर में सेरों दूध होता था, मगर सुजान के कंठ तले एक बूँद भी जाने की क़सम थी। कभी हाकिम लोग चखते, कभी महात्मा लोग। किसान को दूध-घी से क्या मतलब? उसे रोटी और साग चाहिए। सुजान की नम्रता का अब पारावार न था। सबके सामने सिर झुकाए रहता, कहीं लोग यह न कहने लगें कि धन पाकर उसे घमंड हो गया। गाँव में कुल तीन कुएँ थे, बहुत से खेतों मे पानी न पहुँचता था, खेती मारी जाती थी। सुजान ने पक्का कुआँ बनवा दिया। कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ, ब्रह्मभोज हुआ। जिस दिन पहली बार पुर चला, सुजान को मानो चारों पदार्थ मिल गए। जो काम गाँव में किसी ने न किया था, वह बाप-दादा के पुण्य-प्रताप से सुजान ने कर दिखाया।

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  5. नमक का दारोगा (ISBN: 9788180320651)

  6. कजाकी (ISBN: 9788180320644)

  7. गरीब की हाय (ISBN: 9788180320668)

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  9. सुजान भगत (ISBN: 9788180320729)

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  20. दो भाई (ISBN: 9788180320712)

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सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं। दिव्य समाज की भाँति वह पहले अपने भोग-विलास की ओर नहीं दौड़ते। सुजान की खेती में कई साल से कंचन बरस रहा था। मेहनत तो गाँव के सभी किसान करते थे, पर सुजान के चंद्रमा बली थे, ऊसर में भी दाना छींट आता तो कुछ-न-कुछ पैदा हो जाता था। तीन वर्ष लगातार ईख लगती गई। उधर गुड़ का भाव तेज़ था। कोई दो-ढाई हज़ार हाथ में आ गए, बस चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पड़ी। साधु-संतों का आदर-सत्कार होने लगा, द्वार पर धूनी जलने लगी, क़ानूनगो इलाक़े में आते तो सुजान महतो के चौपाल में ठहरते। हलके के हैड कांस्टेबिल, थानेदार, शिक्षा-विभाग का अफ़सर, एक-न-एक उस चौपाल में पड़ा रहता। महतो मारे ख़ुशी के फूले न समाते। धन्य भाग! उसके द्वार पर अब इतने बड़े-बड़े हाकिम आकर ठहरते हैं, जिन हाकिमों के सामने उसका मुँह न खुलता था, उन्हीं की अब ‘महतोमहतो’ करते ज़ुबान सूखती थी। कभी-कभी भजन-भाव हो जाता। एक महात्मा ने डौल अच्छा देखा तो गाँव में आसन जमा दिया। गाँजे और चरस की बहार उड़ने लगी। एक ढोलक आई, मंजीरे मँगाए गए, सत्संग होने लगा। यह सब सुजान के दम का जलूस था।

घर में सेरों दूध होता था, मगर सुजान के कंठ तले एक बूँद भी जाने की क़सम थी। कभी हाकिम लोग चखते, कभी महात्मा लोग। किसान को दूध-घी से क्या मतलब? उसे रोटी और साग चाहिए। सुजान की नम्रता का अब पारावार न था। सबके सामने सिर झुकाए रहता, कहीं लोग यह न कहने लगें कि धन पाकर उसे घमंड हो गया। गाँव में कुल तीन कुएँ थे, बहुत से खेतों मे पानी न पहुँचता था, खेती मारी जाती थी। सुजान ने पक्का कुआँ बनवा दिया। कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ, ब्रह्मभोज हुआ। जिस दिन पहली बार पुर चला, सुजान को मानो चारों पदार्थ मिल गए। जो काम गाँव में किसी ने न किया था, वह बाप-दादा के पुण्य-प्रताप से सुजान ने कर दिखाया।

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