Sangram Part 1-5 (Hindi)

Fiction & Literature, Literary Theory & Criticism, Asian, Literary
Cover of the book Sangram Part 1-5 (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Premchand ISBN: 9781329909106
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: December 1, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop Language: English
Author: Premchand
ISBN: 9781329909106
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: December 1, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop
Language: English

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों भी फूल रही है। शीत-बिंदु पौधों पर चमक रहे हैं।हलधर : अब और कोई बाधा न पड़े तो अबकी उपज अच्छी होगी। कैसी मोटी-मोटी बालें निकल रही हैं।राजेश्वरी : यह तुम्हारी कठिन तपस्या का फल है।हलधर : मेरी तपस्या कभी इतनी सफल न हुई थी। यह सब तुम्हारे पौरे की बरकत है।राजेश्वरी : अबकी से तुम एक मजूर रख लेना। अकेले हैरान हो जाते हो।हलधर : खेत ही नहीं है। मिलें तो अकेले इसके दुगुने जोत सकता हूँ।राजेश्वरी : मैं तो गाय जरूर लूंगी। गऊ के बिना घर सूना मालूम होता है।हलधर : मैं पहले तुम्हारे लिए कंगन बनवाकर तब दूसरी बात करूंगा। महाजन से रूपये ले लूंगा। अनाज तौल दूंगा।राजेश्वरी : कंगन की इतनी क्या जल्दी है कि महाजन से उधर लो।अभी पहले का भी तो कुछ देना है।हलधर : जल्दी क्यों नहीं है। तुम्हारे मैके से बुलावा आएगा ही। किसी नए गहने बिना जाओगी तो तुम्हारे गांव-घर के लोग मुझे हंसेंगे कि नहीं ?राजेश्वरी : तो तुम बुलावा फेर देना। मैं करज लेकर कंगन न बनवाऊँगी। हां, गाय पालना जरूरी है। किसान के घर गोरस न हो तो किसान कैसा तुम्हारे लिए दूध-रोटी का कलेवा लाया करूंगी। बड़ी गाय लेना, चाहे दाम कुछ बेशी देना पड़ जाए।हलधर : तुम्हें और हलकान न होना पड़ेगा। अभी कुछ दिन आराम कर लो, फिर तो यह चक्की पीसनी ही है।राजेश्वरी : खेलना-खाना भाग्य में लिखा होता तो सास-ससुर क्यों सिधार जाते ? मैं अभागिन हूँ। आते-ही-आते उन्हें चट कर गई। नारायण दें तो उनकी बरसी धूम से करना।हलधर : हां, यह तो मैं पहले ही सोच चुका हूँ, पर तुम्हारा कंगन बनना भी जरूरी है। चार आदमी ताने देने लगेंगे तो क्या करोगी ?राजेश्वरी : इसकी चिंता मत करो, मैं उनका जवाब दे लूंगी लेकिन मेरी तो जाने की इच्छा ही नहीं है। जाने और बहुएं कैसे मैके जाने को व्याकुल होती हैं, मेरा तो अब वहां एक दिन भी जी न लगेगी। अपना घर सबसे अच्छा लगता है। अबकी तुलसी का चौतरा जरूर बनवा देना, उसके आस-पास बेला, चमेली, गेंदा और गुलाब के फूल लगा दूंगी तो आंगन की शोभा कैसी बढ़ जाएगी!हलधर : वह देखो, तोतों का झुंड मटर पर टूट पड़ा।

View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों भी फूल रही है। शीत-बिंदु पौधों पर चमक रहे हैं।हलधर : अब और कोई बाधा न पड़े तो अबकी उपज अच्छी होगी। कैसी मोटी-मोटी बालें निकल रही हैं।राजेश्वरी : यह तुम्हारी कठिन तपस्या का फल है।हलधर : मेरी तपस्या कभी इतनी सफल न हुई थी। यह सब तुम्हारे पौरे की बरकत है।राजेश्वरी : अबकी से तुम एक मजूर रख लेना। अकेले हैरान हो जाते हो।हलधर : खेत ही नहीं है। मिलें तो अकेले इसके दुगुने जोत सकता हूँ।राजेश्वरी : मैं तो गाय जरूर लूंगी। गऊ के बिना घर सूना मालूम होता है।हलधर : मैं पहले तुम्हारे लिए कंगन बनवाकर तब दूसरी बात करूंगा। महाजन से रूपये ले लूंगा। अनाज तौल दूंगा।राजेश्वरी : कंगन की इतनी क्या जल्दी है कि महाजन से उधर लो।अभी पहले का भी तो कुछ देना है।हलधर : जल्दी क्यों नहीं है। तुम्हारे मैके से बुलावा आएगा ही। किसी नए गहने बिना जाओगी तो तुम्हारे गांव-घर के लोग मुझे हंसेंगे कि नहीं ?राजेश्वरी : तो तुम बुलावा फेर देना। मैं करज लेकर कंगन न बनवाऊँगी। हां, गाय पालना जरूरी है। किसान के घर गोरस न हो तो किसान कैसा तुम्हारे लिए दूध-रोटी का कलेवा लाया करूंगी। बड़ी गाय लेना, चाहे दाम कुछ बेशी देना पड़ जाए।हलधर : तुम्हें और हलकान न होना पड़ेगा। अभी कुछ दिन आराम कर लो, फिर तो यह चक्की पीसनी ही है।राजेश्वरी : खेलना-खाना भाग्य में लिखा होता तो सास-ससुर क्यों सिधार जाते ? मैं अभागिन हूँ। आते-ही-आते उन्हें चट कर गई। नारायण दें तो उनकी बरसी धूम से करना।हलधर : हां, यह तो मैं पहले ही सोच चुका हूँ, पर तुम्हारा कंगन बनना भी जरूरी है। चार आदमी ताने देने लगेंगे तो क्या करोगी ?राजेश्वरी : इसकी चिंता मत करो, मैं उनका जवाब दे लूंगी लेकिन मेरी तो जाने की इच्छा ही नहीं है। जाने और बहुएं कैसे मैके जाने को व्याकुल होती हैं, मेरा तो अब वहां एक दिन भी जी न लगेगी। अपना घर सबसे अच्छा लगता है। अबकी तुलसी का चौतरा जरूर बनवा देना, उसके आस-पास बेला, चमेली, गेंदा और गुलाब के फूल लगा दूंगी तो आंगन की शोभा कैसी बढ़ जाएगी!हलधर : वह देखो, तोतों का झुंड मटर पर टूट पड़ा।

More books from Sai ePublications & Sai Shop

Cover of the book Pratigya (Hindi) by Premchand
Cover of the book The Money Moon by Premchand
Cover of the book Srishti (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 8 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 5 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Rahsya (Hindi) by Premchand
Cover of the book Durgadas (Hindi) by Premchand
Cover of the book Durgadas (Hindi) by Premchand
Cover of the book Gaban (Hindi) by Premchand
Cover of the book Rangbhumi (Hindi) by Premchand
Cover of the book Ramcharitmanas (Hindi) by Premchand
Cover of the book My Reminiscences by Premchand
Cover of the book Prema (Hindi) by Premchand
Cover of the book Srikanta (Hindi) by Premchand
Cover of the book Karmabhumi (Hindi) by Premchand
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy