Mansarovar - Part 1-4 (Hindi)

Fiction & Literature, Literary Theory & Criticism, Literary
Cover of the book Mansarovar - Part 1-4 (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Premchand ISBN: 9781310595301
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: September 23, 2014
Imprint: Smashwords Edition Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781310595301
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: September 23, 2014
Imprint: Smashwords Edition
Language: Hindi

मानसरोवर - भाग 1

अलग्योझा | ईदगाह | माँ | बेटोंवाली विधवा | बड़े भाई साहब | शांति | नशा | स्‍वामिनी | ठाकुर का कुआँ | घर जमाई | पूस की रात | झाँकी | गुल्‍ली-डंडा | ज्योति | दिल की रानी | धिक्‍कार | कायर | शिकार | सुभागी | अनुभव | लांछन | आखिरी हीला | तावान | घासवाली | गिला | रसिक संपादक | मनोवृत्ति

मानसरोवर - भाग 2

कुसुम | दाई फौजदार | वेश्या | चमत्कार | मोटर के छींटे | कैदी | मिस पद्मा | विद्रोही | कुत्सा | दो बैलों की कथा | रियासत का दीवान | मुफ्त का यश | बासी भात में खुदा का साझा | दूध का दाम | बालक | जीवन का शाप | डामुल का कैदी | नेउर | गृह-नीति | कानूनी कुमार | लॉटरी | जादू | नया विवाह | शूद्र

मानसरोवर - भाग 3

विश्‍वास | नरक का मार्ग | स्त्री और पुरुष | उध्दार | निर्वासन | नैराश्य लीला | कौशल | स्वर्ग की देवी | आधार | एक आँच की कसर | माता का हृदय | परीक्षा | तेंतर | नैराश्य | दण्ड | धिक्‍कार | लैला | मुक्तिधन | दीक्षा | क्षमा | मनुष्य का परम धर्म | गुरु-मंत्र | सौभाग्य के कोड़े | विचित्र होली | मुक्ति-मार्ग | डिक्री के रुपये | शतरंज के खिलाड़ी | वज्रपात | सत्याग्रह | भाड़े का टट्टू | बाबाजी का भोग | विनोद

मानसरोवर - भाग 4

प्रेरणा | सद्गति | तगादा | दो कब्रें | ढपोरसंख | डिमॉन्सट्रेशन | दारोगाजी | अभिलाषा | खुचड़ | आगा-पीछा | प्रेम का उदय | सती | मृतक-भोज | भूत | सवा सेर गेहूँ | सभ्यता का रहस्य | समस्या | दो सखियाँ | स्मृति का पुजारी

-----------------------

भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की तो उसके लड़के रग्घू के लिये बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैन से गाँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। माँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना रुपवती स्त्री थी और रुप और गर्व में चोली-दामन का नाता है। वह अपने हाथों से कोई काम न करती। गोबर रग्घू निकालता, बैलों को सानी रग्घू देता। रग्घू ही जूठे बरतन माँजता। भोला की आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब रग्घू में सब बुराइयाँ-ही- बुराइयाँ नजर आतीं। पन्ना की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बंद करके मान लेता था। रग्घू की शिकायतों की जरा परवाह न करता। नतीजा यह हुआ कि रग्घू ने शिकायत करना ही छोड़ दिया। किसके सामने रोये? बाप ही नहीं, सारा गाँव उसका दुश्मन था। बड़ा जिद्दी लड़का है, पन्ना को तो कुछ समझता ही नहीं; बेचारी उसका दुलार करती है, खिलाती-पिलाती है यह उसी का फल है। दूसरी औरत होती, तो निबाह न होता। वह तो कहो, पन्ना इतनी सीधी-सादी है कि निबाह होता जाता है। सबल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद भी कोई नहीं सुनता! रग्घू का हृदय माँ की ओर से दिन-दिन फटता जाता था। यहाँ तक कि आठ साल गुजर गये और एक दिन भोला के नाम भी मृत्यु का संदेश आ पहुँचा।

पन्ना के चार बच्चे थे- तीन बेटे और एक बेटी। इतना बड़ा खर्च और कमानेवाला कोई नहीं। रग्घू अब क्यों बात पूछने लगा? यह मानी हुई बात थी। अपनी स्त्री लाएगा और अलग रहेगा। स्त्री आकर और भी आग लगायेगी। पन्ना को चारों ओर अंधेरा- ही- अंधेरा दिखाई देता था। पर कुछ भी हो, वह रग्घू की आसरैत बनकर घर में न रहेगी। जिस घर में उसने राज किया, उसमें अब लौंडी न बनेगी। जिस लौंडे को अपना गुलाम समझा, उसका मुँह न ताकेगी। वह सुन्दर थी, अवस्था अभी कुछ ऐसी ज्यादा न थी। जवानी अपनी पूरी बहार पर थी। क्या वह कोई दूसरा घर नहीं कर सकती? यही न होगा, लोग हँसेंगे। बला से! उसकी बिरादरी में क्या ऐसा होता नहीं? ब्राह्मण, ठाकुर थोड़ी ही थी कि नाक कट जायगी। यह तो उन्ही ऊँची जातों में होता है कि घर में चाहे जो कुछ करो, बाहर परदा ढका रहे। वह तो संसार को दिखाकर दूसरा घर कर सकती है, फिर वह रग्घू की दबैल बनकर क्यों रहे?

भोला को मरे एक महीना गुजर चुका था। संध्या हो गयी थी। पन्ना इसी चिन्ता में पड़ी हुई थी कि सहसा उसे ख्याल आया, लड़के घर में नहीं हैं। यह बैलों के लौटने की बेला है, कहीं कोई लड़का उनके नीचे न आ जाय। अब द्वा र पर कौन है, जो उनकी देखभाल करेगा? रग्घू को मेरे लड़के फूटीआँखों नहीं भाते। कभी हँसकर नहीं बोलता। घर से बाहर निकली, तो देखा, रग्घू सामने झोपड़े में बैठा ऊख की गँडेरिया बना रहा है, लड़के उसे घेरे खड़े हैं और छोटी लड़की उसकी गर्दन में हाथ डाले उसकी पीठ पर सवार होने की चेष्टा कर रही है। पन्ना को अपनी आँखों पर विश्वास न आया। आज तो यह नयी बात है। शायद दुनिया को दिखाता है कि मैं अपने भाइयों को कितना चाहता हूँ और मन में छुरी रखी हुई है। घात मिले तो जान ही ले ले! काला साँप है, काला साँप! कठोर स्वर में बोली-तुम सबके सब वहाँ क्या करते हो? घर में आओ, साँझ की बेला है, गोरु आते होंगे।

View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart

मानसरोवर - भाग 1

अलग्योझा | ईदगाह | माँ | बेटोंवाली विधवा | बड़े भाई साहब | शांति | नशा | स्‍वामिनी | ठाकुर का कुआँ | घर जमाई | पूस की रात | झाँकी | गुल्‍ली-डंडा | ज्योति | दिल की रानी | धिक्‍कार | कायर | शिकार | सुभागी | अनुभव | लांछन | आखिरी हीला | तावान | घासवाली | गिला | रसिक संपादक | मनोवृत्ति

मानसरोवर - भाग 2

कुसुम | दाई फौजदार | वेश्या | चमत्कार | मोटर के छींटे | कैदी | मिस पद्मा | विद्रोही | कुत्सा | दो बैलों की कथा | रियासत का दीवान | मुफ्त का यश | बासी भात में खुदा का साझा | दूध का दाम | बालक | जीवन का शाप | डामुल का कैदी | नेउर | गृह-नीति | कानूनी कुमार | लॉटरी | जादू | नया विवाह | शूद्र

मानसरोवर - भाग 3

विश्‍वास | नरक का मार्ग | स्त्री और पुरुष | उध्दार | निर्वासन | नैराश्य लीला | कौशल | स्वर्ग की देवी | आधार | एक आँच की कसर | माता का हृदय | परीक्षा | तेंतर | नैराश्य | दण्ड | धिक्‍कार | लैला | मुक्तिधन | दीक्षा | क्षमा | मनुष्य का परम धर्म | गुरु-मंत्र | सौभाग्य के कोड़े | विचित्र होली | मुक्ति-मार्ग | डिक्री के रुपये | शतरंज के खिलाड़ी | वज्रपात | सत्याग्रह | भाड़े का टट्टू | बाबाजी का भोग | विनोद

मानसरोवर - भाग 4

प्रेरणा | सद्गति | तगादा | दो कब्रें | ढपोरसंख | डिमॉन्सट्रेशन | दारोगाजी | अभिलाषा | खुचड़ | आगा-पीछा | प्रेम का उदय | सती | मृतक-भोज | भूत | सवा सेर गेहूँ | सभ्यता का रहस्य | समस्या | दो सखियाँ | स्मृति का पुजारी

-----------------------

भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की तो उसके लड़के रग्घू के लिये बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैन से गाँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। माँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना रुपवती स्त्री थी और रुप और गर्व में चोली-दामन का नाता है। वह अपने हाथों से कोई काम न करती। गोबर रग्घू निकालता, बैलों को सानी रग्घू देता। रग्घू ही जूठे बरतन माँजता। भोला की आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब रग्घू में सब बुराइयाँ-ही- बुराइयाँ नजर आतीं। पन्ना की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बंद करके मान लेता था। रग्घू की शिकायतों की जरा परवाह न करता। नतीजा यह हुआ कि रग्घू ने शिकायत करना ही छोड़ दिया। किसके सामने रोये? बाप ही नहीं, सारा गाँव उसका दुश्मन था। बड़ा जिद्दी लड़का है, पन्ना को तो कुछ समझता ही नहीं; बेचारी उसका दुलार करती है, खिलाती-पिलाती है यह उसी का फल है। दूसरी औरत होती, तो निबाह न होता। वह तो कहो, पन्ना इतनी सीधी-सादी है कि निबाह होता जाता है। सबल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद भी कोई नहीं सुनता! रग्घू का हृदय माँ की ओर से दिन-दिन फटता जाता था। यहाँ तक कि आठ साल गुजर गये और एक दिन भोला के नाम भी मृत्यु का संदेश आ पहुँचा।

पन्ना के चार बच्चे थे- तीन बेटे और एक बेटी। इतना बड़ा खर्च और कमानेवाला कोई नहीं। रग्घू अब क्यों बात पूछने लगा? यह मानी हुई बात थी। अपनी स्त्री लाएगा और अलग रहेगा। स्त्री आकर और भी आग लगायेगी। पन्ना को चारों ओर अंधेरा- ही- अंधेरा दिखाई देता था। पर कुछ भी हो, वह रग्घू की आसरैत बनकर घर में न रहेगी। जिस घर में उसने राज किया, उसमें अब लौंडी न बनेगी। जिस लौंडे को अपना गुलाम समझा, उसका मुँह न ताकेगी। वह सुन्दर थी, अवस्था अभी कुछ ऐसी ज्यादा न थी। जवानी अपनी पूरी बहार पर थी। क्या वह कोई दूसरा घर नहीं कर सकती? यही न होगा, लोग हँसेंगे। बला से! उसकी बिरादरी में क्या ऐसा होता नहीं? ब्राह्मण, ठाकुर थोड़ी ही थी कि नाक कट जायगी। यह तो उन्ही ऊँची जातों में होता है कि घर में चाहे जो कुछ करो, बाहर परदा ढका रहे। वह तो संसार को दिखाकर दूसरा घर कर सकती है, फिर वह रग्घू की दबैल बनकर क्यों रहे?

भोला को मरे एक महीना गुजर चुका था। संध्या हो गयी थी। पन्ना इसी चिन्ता में पड़ी हुई थी कि सहसा उसे ख्याल आया, लड़के घर में नहीं हैं। यह बैलों के लौटने की बेला है, कहीं कोई लड़का उनके नीचे न आ जाय। अब द्वा र पर कौन है, जो उनकी देखभाल करेगा? रग्घू को मेरे लड़के फूटीआँखों नहीं भाते। कभी हँसकर नहीं बोलता। घर से बाहर निकली, तो देखा, रग्घू सामने झोपड़े में बैठा ऊख की गँडेरिया बना रहा है, लड़के उसे घेरे खड़े हैं और छोटी लड़की उसकी गर्दन में हाथ डाले उसकी पीठ पर सवार होने की चेष्टा कर रही है। पन्ना को अपनी आँखों पर विश्वास न आया। आज तो यह नयी बात है। शायद दुनिया को दिखाता है कि मैं अपने भाइयों को कितना चाहता हूँ और मन में छुरी रखी हुई है। घात मिले तो जान ही ले ले! काला साँप है, काला साँप! कठोर स्वर में बोली-तुम सबके सब वहाँ क्या करते हो? घर में आओ, साँझ की बेला है, गोरु आते होंगे।

More books from Sai ePublications & Sai Shop

Cover of the book Woman Her Sex and Love Life by Premchand
Cover of the book The Money Moon by Premchand
Cover of the book Sangram Part 1-5 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Meri Pahli Rachna (Hindi) by Premchand
Cover of the book Duniya Ka Sabse Anmol Ratan (Hindi) by Premchand
Cover of the book The King of the Dark Chamber by Premchand
Cover of the book Ramcharitmanas by Premchand
Cover of the book Aankh Ki Kirkiri (Hindi) by Premchand
Cover of the book Rabindranath Tagore's Selected Stories (Hindi) by Premchand
Cover of the book Nirmala (Hindi) by Premchand
Cover of the book Quiz on Information Technology for Grade 9-10 by Premchand
Cover of the book Ghar Jamai Aur Dhikkar (Hindi) by Premchand
Cover of the book Namak ka Droga (Hindi) by Premchand
Cover of the book Aarti Sangrah (Hindi) by Premchand
Cover of the book Chamatkar Aur Beti Ka Dhan (Hindi) by Premchand
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy