Author: | Sudhir Bansal | ISBN: | 9789385818172 |
Publisher: | OnlineGatha | Publication: | December 27, 2015 |
Imprint: | Smashwords Edition | Language: | Hindi |
Author: | Sudhir Bansal |
ISBN: | 9789385818172 |
Publisher: | OnlineGatha |
Publication: | December 27, 2015 |
Imprint: | Smashwords Edition |
Language: | Hindi |
कैसे ताल मिलाऊँ मैं
कुछ तो मेरी मजबूरी है|
कुछ मुझको जल्दी भी है।
फूल बनाने की कोशिश में|
कैसे कली खिलाऊँ मैं।
कुछ दिल पर चोटें ज्यादा हैं|
कुछ मन पहले से भरा हुआ।
नई चोट दिल पर लाने की|
कैसे गली बनाऊँ मैं।|
कुछ तो जहन भी अलग-अलग है|
कुछ मन की भी दूरी है।
नजदीक रहा बेशक जीवन भर|
कैसे पास बुलाऊँ मैं।
कुछ तो दिल में उमंग नहीं है|
कुछ मन पहले से मरा हुआ।
नई चाल में आने वाला|
कैसे ताश बनाऊँ मैं।|
कुछ तो चुप्पी साध रखी है|
कुछ मन की भी थाह नहीं है।
उसका जहन बनाने वाली|
कैसे बात बनाऊँ मैं।
कुछ देर है सावन के आने में|
कुछ धरती सारी तपी हुई है।
धरती पर स्त्रोत बनाने वाली|
कैसे लात बनाऊं मैं||
कैसे ताल मिलाऊँ मैं
कुछ तो मेरी मजबूरी है|
कुछ मुझको जल्दी भी है।
फूल बनाने की कोशिश में|
कैसे कली खिलाऊँ मैं।
कुछ दिल पर चोटें ज्यादा हैं|
कुछ मन पहले से भरा हुआ।
नई चोट दिल पर लाने की|
कैसे गली बनाऊँ मैं।|
कुछ तो जहन भी अलग-अलग है|
कुछ मन की भी दूरी है।
नजदीक रहा बेशक जीवन भर|
कैसे पास बुलाऊँ मैं।
कुछ तो दिल में उमंग नहीं है|
कुछ मन पहले से मरा हुआ।
नई चाल में आने वाला|
कैसे ताश बनाऊँ मैं।|
कुछ तो चुप्पी साध रखी है|
कुछ मन की भी थाह नहीं है।
उसका जहन बनाने वाली|
कैसे बात बनाऊँ मैं।
कुछ देर है सावन के आने में|
कुछ धरती सारी तपी हुई है।
धरती पर स्त्रोत बनाने वाली|
कैसे लात बनाऊं मैं||