Author: | KamlaNath | ISBN: | 1230000789455 |
Publisher: | onlinegatha | Publication: | November 20, 2015 |
Imprint: | PaperBack | Language: | English |
Author: | KamlaNath |
ISBN: | 1230000789455 |
Publisher: | onlinegatha |
Publication: | November 20, 2015 |
Imprint: | PaperBack |
Language: | English |
कहानी का कथ्य हमेशा आसपास बिखरा होता है। कथाकार को केवल उसको समझ, समेट कर अपने लहज़े में बयान कर देना भर होता है। मैंने भी यही किया है, इसलिए कहने के लिए कोई नई बात नहीं है। एक आम आदमी की तरह ही वेदना से गुज़रा हूँ, समाज के स्वयम्भू ‘मार्गदर्शकों’ से भ्रमित किए गए रास्ता खोजते लोगों से प्रभावित हुआ हूँ, इधर उधर होते शोषण और पीड़ितों की विवशता को देखा है, और समय की परतों के अंदर से झांकते मासूम, खुशनुमा लमहों को भरपूर समेटा है। ख़ुद की कहानियों के बारे में वक्तव्य अर्थहीन होता है। केवल समीक्षकों के हिस्से में यह ज़िम्मेदारी आती है जो कहानी-शिल्प, भाषा-शैली, कथ्य जैसे उपकरणों से शल्य-चिकित्सा करते हैं। इसलिए वास्तव में ‘भूमिका’, ‘प्रस्तावना’ वगैरह के नाम से दाखिल हो जाने वाले निबंध के किसी हिस्से की ज़रूरत महसूस नहीं होती। यदि संग्रह की कोई कहानी पाठक को पसंद आती है तो यही लेखक की रचना के लिए उपहार है। यह कहानी संग्रह समर्पित सभी विचारशील पाठकों को!
कहानी का कथ्य हमेशा आसपास बिखरा होता है। कथाकार को केवल उसको समझ, समेट कर अपने लहज़े में बयान कर देना भर होता है। मैंने भी यही किया है, इसलिए कहने के लिए कोई नई बात नहीं है। एक आम आदमी की तरह ही वेदना से गुज़रा हूँ, समाज के स्वयम्भू ‘मार्गदर्शकों’ से भ्रमित किए गए रास्ता खोजते लोगों से प्रभावित हुआ हूँ, इधर उधर होते शोषण और पीड़ितों की विवशता को देखा है, और समय की परतों के अंदर से झांकते मासूम, खुशनुमा लमहों को भरपूर समेटा है। ख़ुद की कहानियों के बारे में वक्तव्य अर्थहीन होता है। केवल समीक्षकों के हिस्से में यह ज़िम्मेदारी आती है जो कहानी-शिल्प, भाषा-शैली, कथ्य जैसे उपकरणों से शल्य-चिकित्सा करते हैं। इसलिए वास्तव में ‘भूमिका’, ‘प्रस्तावना’ वगैरह के नाम से दाखिल हो जाने वाले निबंध के किसी हिस्से की ज़रूरत महसूस नहीं होती। यदि संग्रह की कोई कहानी पाठक को पसंद आती है तो यही लेखक की रचना के लिए उपहार है। यह कहानी संग्रह समर्पित सभी विचारशील पाठकों को!